किसलय की आहट है
रँग की फगुनाहट है
प्रकृति की रचना का
हो रहा अब स्वागत है
मन मयूर थिरक उठा
आम भी बौराया है
चिड़ियों ने चहक चहक
राग कोई गाया है
जाग उठी कल्पना
लेती अंगड़ाई है
नीम की निम्बोड़ि भी
फिर से इठलाई है
कोयल ने कुहुक कुहक
संदेसा सुनाया है
अठखेलियों में सृष्टि के
रँग मदमाया है
सखी फिर बसंत आया है
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति"