नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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12 July, 2021

व्यथित हृदय की वेदना




व्यथित हृदय की वेदना का

कोई तो पारावार   हो

ला सके जो स्वप्न वापस

कोई तो आसार हो 


 मूँद कर पलकें जो  सोई

स्वप्न जैसे सो गए

राहें धूमिल सी हुईं

जो रास्ते थे खो गए ,


पीर सी छाई घनेरी

रात  भी कैसे कटे ,

तीर सी चुभती हवा का

दम्भ भी कैसे घटे  


कर सके जो पथ प्रदर्शित

कोई दीप संचार हो

हृदय  के कोने में जो जलता,

ज्योति का आगार हो  


व्यथित हृदय की वेदना का

कोई तो पारावार  हो  


 ओस पंखुड़ी पर जमी है

स्वप्न क्यूँ सजते नहीं ?

बीत जात सकल रैन

नैन क्यूँ  मुंदते  नहीं ?


विस्मृति तोड़े जो ऐसी ,

किंकणी झंकार हो

मेरी स्मृतियों की धरोहर 

पुलक का आधार हो 


व्यथित हृदय  की वेदना का

कोई तो पारावार  हो


अनुपमा त्रिपाठी

  "सुकृति "