कोई तो पारावार हो
ला सके जो स्वप्न वापस
कोई तो आसार हो
मूँद कर पलकें जो सोई
स्वप्न जैसे सो गए
राहें धूमिल सी हुईं
जो रास्ते थे खो गए ,
पीर सी छाई घनेरी
रात भी कैसे कटे ,
तीर सी चुभती हवा का
दम्भ भी कैसे घटे
कर सके जो पथ प्रदर्शित
कोई दीप संचार हो
हृदय के कोने में जो जलता,
ज्योति का आगार हो
व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार हो
ओस पंखुड़ी पर जमी है
स्वप्न क्यूँ सजते नहीं ?
बीत जात सकल रैन
नैन क्यूँ मुंदते नहीं ?
विस्मृति तोड़े जो ऐसी ,
किंकणी झंकार हो
मेरी स्मृतियों की धरोहर
पुलक का आधार हो
व्यथित हृदय की वेदना का
कोई तो पारावार हो
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "