नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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31 January, 2014

जीवन को और चाहिए भी क्या …???

सोलह कलाओं से खिला चंद्रमा ,
ऐश्वर्यपूर्ण लावण्यमई लाजवंती चंद्रिका ,
ऐसा ऐश्वर्य पा ,
लाज से निर्झर सी झरती,
यूं उतरती चली नदिया  में,
मानो लाज से गड़  गई है....!!

पा ज्योत्स्नामृत
वाचाल हो उठी
सुगम्भीर प्रशांता पावनी (नदी)
कल कल निनाद
गुंजायमान ज्यों किंकनी (घुँघरू)

जल प्रपात का विनोद ,
यह क्रीड़ा कौतुक  निहार
मन कौतूहल से आमोद ,
अक्षय ताजगी से प्रमोद .

निर्जनसे इस वन  में,
प्रकृति के चिर नवीन आकर्षण में,
स्वर श्रुतियों में अमृत घोल
बोल रही है मीठे बोल ,
बीत रहे  ये क्षण अनमोल .……
बोलो तो……
जीवन को और चाहिए भी क्या …???