सोलह कलाओं से खिला चंद्रमा ,
ऐश्वर्यपूर्ण लावण्यमई लाजवंती चंद्रिका ,
ऐसा ऐश्वर्य पा ,
लाज से निर्झर सी झरती,
यूं उतरती चली नदिया में,
मानो लाज से गड़ गई है....!!
पा ज्योत्स्नामृत
वाचाल हो उठी
सुगम्भीर प्रशांता पावनी (नदी)
कल कल निनाद
गुंजायमान ज्यों किंकनी (घुँघरू)
जल प्रपात का विनोद ,
यह क्रीड़ा कौतुक निहार
मन कौतूहल से आमोद ,
अक्षय ताजगी से प्रमोद .
निर्जनसे इस वन में,
प्रकृति के चिर नवीन आकर्षण में,
स्वर श्रुतियों में अमृत घोल
बोल रही है मीठे बोल ,
बीत रहे ये क्षण अनमोल .……
बोलो तो……
जीवन को और चाहिए भी क्या …???
ऐश्वर्यपूर्ण लावण्यमई लाजवंती चंद्रिका ,
ऐसा ऐश्वर्य पा ,
लाज से निर्झर सी झरती,
यूं उतरती चली नदिया में,
मानो लाज से गड़ गई है....!!
पा ज्योत्स्नामृत
वाचाल हो उठी
सुगम्भीर प्रशांता पावनी (नदी)
कल कल निनाद
गुंजायमान ज्यों किंकनी (घुँघरू)
जल प्रपात का विनोद ,
यह क्रीड़ा कौतुक निहार
मन कौतूहल से आमोद ,
अक्षय ताजगी से प्रमोद .
निर्जनसे इस वन में,
प्रकृति के चिर नवीन आकर्षण में,
स्वर श्रुतियों में अमृत घोल
बोल रही है मीठे बोल ,
बीत रहे ये क्षण अनमोल .……
बोलो तो……
जीवन को और चाहिए भी क्या …???
सच कुछ नहीं चाहिए....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!
सस्नेह
अनु
प्रकृति के सौंदर्य के आगे सभी वस्तु तुच्छ लगने लगती हैं...
ReplyDeleteजीवन में निर्मल स्वच्छ चाँदनी बिखरे रहे तो ....और कुछ नहीं चाहिए !
ReplyDeleteसियासत “आप” की !
नई पोस्ट मौसम (शीत काल )
सुंदर शब्द-चित्र।
ReplyDeleteइस निर्जन वन में
ReplyDeleteप्रकृति के सौहार्द्रपूर्ण सानिध्य में,
अनमोल से ये पल.……
बोलो तो……
जीवन को और चाहिए भी क्या …???
अति सुन्दर।
इस निर्जन वन में
ReplyDeleteप्रकृति के सौहार्द्रपूर्ण सानिध्य में,
अनमोल से ये पल.……
बोलो तो……
जीवन को और चाहिए भी क्या …???
बिल्कुल सच कहती पंक्तियां
प्रकृति के ये स्थिर चित्र शब्दों को प्रवाह दें जाते हैं।
ReplyDeleteप्रकृति सुंदरी सत्य बता दे , पाया कहाँ से इतना प्यार . अद्भुत शब्द चित्र खीचा है दी.
ReplyDeleteप्रकृति , गीत , संगीत और क्या चाहिए भला !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
कितना कुछ तो है .... भला और क्या चाहिए .... बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteआलोकिक प्राकृति का सौंदर्य बोध लिए ... सुन्दर शब्द ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ...!!
ReplyDeleteइस अनमोल क्षण से ज्यादा और चाहिए भी क्या...
ReplyDeleteनिर्जनसे इस वन में,
प्रकृति के चिर नवीन आकर्षण में,
स्वर श्रुतियों में अमृत घोल
बोल रही है मीठे बोल ,
बीत रहे ये क्षण अनमोल .……
बोलो तो……
जीवन को और चाहिए भी क्या …???
बहुत सुन्दर रचना, अनूठे भाव, बधाई.
सुंदर शब्द सामर्थ्य , बधाई आपको !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteआभार हृदय से मेरी रचना हो हलचल पर लेने हेतु ...!!
ReplyDeleteप्रकृति के इस वैभव से मन को जो आनन्द और तृप्ति मिलती है वह केवल अनुभवगम्य है :
ReplyDeleteअति सुन्दर !.
आनंद से भरा प्रकृति .....भावपूर्ण सुन्दर
ReplyDeleteप्रकृति का सन्निध्य हो और सौन्दर्य अनुभव करने वाला हृदय..सचमुच जीवन को और क्या चाहिए..?
ReplyDeleteविभावरीश और उससे जुड़े समस्त सौंदर्य ने मन प्रफुल्लित कर दिया.
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