नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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06 January, 2012

ताम्बे का लोटा चमकता है ....!!

मुझे प्रेम  है सबसे ..
ईश्वर से ..
तुमसे ..उससे ....
फूलों  से ..काँटों  से ...

.स्वयं से...
अंतर्मन  से ...अंतरात्मा से ..
हाँ ..हाँ .अपने मन से .. भी ..
तभी तो ...
उसे साफ़ रखने के लिए ...

जल तुलसी पर डालने हेतु ...
जब मैं ताम्बे के लोटे को..
 मिट्टी से ..राख से ..
घिस-घिस  कर  मांजती हूँ ...
 बंद आँख कर ..
उतरती हूँ अवचेतन मन में ..
दंभ  से भरे वो पल याद कर ..
घिस-घिस कर ..
मन का मैल भी साफ़ करती हूँ ..
और .. अपने  मन में पल रहे .. ...
आग से तपते अहंकार को ...
इस अद्भुत जल से ..
तुलसी पर जल डालते हुए ...
सर झुका कर ..
ठंडा  कर देती हूँ
शांत   करती  हूँ  ...!!


मैला मन साफ़ करने के लिए ...
प्रभु ,तुमसे ,और अपने मन से भी  ...
 पास रहने  के लिए ..
ये प्रयास सतत करना पड़ता है ...
क्योंकि फेरी फेरी आती है ...
अहंकार की दुर्भावना .......
मिटा देती है प्रेम की सद्भावना ..


मन के ताम्बे को
निखारने के लिए-
एक महाभारत मन में
नित्य ही चलता है ...
तब जाकर कहीं ...
ताम्बे का लोटा चमकता है ....!!

33 comments:

  1. जाने कितने रण चलते हैं, मन ही मन में।

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  2. ताम्बे का लोटा रोज़ चमकता है ....!!

    अदभुत और अनुपम चमक है जी.
    चम चम चमकने लगा है सारा ब्लॉग जगत
    इसकी शानदार चमक से.

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  3. क्या कहूँ ,
    जीवन दर्शन से पूरित मन की आवाज,
    पावन भाव मन में संजोये गा रही मन का गीत है आज ..| बधाई ,इस गहरे भावों के सृजन हेतु |

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  4. bahu khoob likha aapane
    sach kaha ke man ke andar ka mail saaf nahi hota baar baar aa jata hain

    mere blog par bhi aaiyega
    umeed kara hun aapko pasand aayega
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

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  5. बहुत सुन्दर अनुपमा जी..
    आत्मविश्लेषण और शुद्धिकरण बहुत ज़रुरी है..
    सादर.

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  6. मन के ताम्बे को
    निखारने के लिए-
    एक महाभारत मन में
    नित्य ही चलता है ...
    तब जाकर कहीं ...
    ताम्बे का लोटा रोज़ चमकता है अनुपमा जी बहुत सुन्दर
    सच्ची पूजा है आपकी ...
    मन मैं .....

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  7. मन निखर गया है... और उतना ही निखरी हुई है आपकी यह कविता!

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  8. एक महाभारत मन में
    नित्य ही चलता है ...
    तब जाकर कहीं ...
    ताम्बे का लोटा रोज़ चमकता है ....!!

    बहुत खूब.

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  9. फेरी फेरी आती हुई अहंकार की दुर्भावना को निर्मल जल से फेरी-हेरी स्वच्छ करना .. अनुपमा जी , कितनी सुन्दर बात कही है आपने.हाँ! जब सिल पर निशान पड़ सकता है तो मन पर क्यों नहीं..

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  10. बहुत ही सुन्दर पोस्ट.......मन को मांझ कर ही शुद्ध तक पहुंचा जा सकता है |

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  11. बहुत सुंदर


    मन के ताम्बे को
    निखारने के लिए-
    एक महाभारत मन में
    नित्य ही चलता है ...
    तब जाकर कहीं ...
    ताम्बे का लोटा रोज़ चमकता है ....!!

    क्या कहने

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  12. प्रभु ,तुमसे ,और अपने मन से भी ...
    पास रहने के लिए ..
    ये प्रयास सतत करना पड़ता है ...
    क्योंकि फेरी फेरी आती है ...
    अहंकार की दुर्भावना .......
    मिटा देती है प्रेम की सद्भावना ..बहुत ही बढ़िया , सीखने योग्य

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  13. बहुत सुंदर साधना के सूत्र बताती रचना..

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  14. दंभ से भरे वो पल याद कर ..
    घिस-घिस कर ..
    मन का मैल भी साफ़ करती हूँ ..

    बहुत सुन्दर रचना... वाह! वाह!
    सादर बधाई..

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  15. ...कमाल की रचना...बधाई...

    नीरज

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  16. प्रभु ,तुमसे ,और अपने मन से भी ...
    पास रहने के लिए ..
    ये प्रयास सतत करना पड़ता है ...
    क्योंकि फेरी फेरी आती है ...
    अहंकार की दुर्भावना .......
    मिटा देती है प्रेम की सद्भावना ..

    vah Anupama ji bahut hi sundar bhav badhai .... mere blog pr amantran sweekaren

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  17. बहुत खूब ... कितना कुछ जीवन का सार जोड़ लिया इस एक ताम्बे के लोटे के साथ ... लाजवाब ...

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  18. शब्दों की अनवरत और गहन अभिवयक्ति........ और सार्थक पोस्ट.....

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  19. bahut sundar
    man taambe ke laute jaisaa hee to hai
    aatm manthan aur aatm anveshan se
    chamk jaataa hai

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  20. वाह ...बहुत बढिया।

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  21. बहुत खूब! गहन चिंतन की सहज और सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  22. मन के ताम्बे को
    निखारने के लिए-
    एक महाभारत मन में
    नित्य ही चलता है ...
    तब जाकर कहीं ...
    ताम्बे का लोटा चमकता है ....!!.............वाह बहुत खूब


    मन के अहम को मारना ही तो बेहद कठिन हो जाता हैं ....

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  23. kavita bahut hi adbhud hai ..bahut hi sundar hai ...aur kuch lines hai jinka koi jawab nahi आग से तपते अहंकार को ...
    इस अद्भुत जल से ..
    तुलसी पर जल डालते हुए ...
    सर झुका कर ..
    ठंडा कर देती हूँ
    शांत करती हूँ ...!!
    summit of imagination ...so nice

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  24. bahut sundar..Vaah ..kitni sundar baat ..man ke tambe ke lote ko satat saaf karna padhta hai ..unda... ati sundar kavita

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  25. बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा अभिव्यक्ति! बधाई!

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  26. आपके पोस्ट पर आकर का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

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  27. सुंदर अभिव्यक्ति बहुत बढ़िया सार्थक रचना,....बेहतरीन पोस्ट
    welcome to new post --"काव्यान्जलि"--

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  28. पूजा करते वक़्त पूजा का लोटा ही साफ़ न हो ध्यान नहीं लगता पूजा में ....!!आभार आप सभी का ...मेरे भावों से जुड़ने के लिए .....

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  29. अहंकार से उपजी दुर्भावनाओं को हटाने के लिए मांजना पड़ता है सतत .. इस तरह प्रयासरत हो कर ही प्रेम बनाये रखा जा सकता है .. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ... आभार

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  30. सुंदर कविता, प्रेरक और व्यावहारिक संदेश। धन्यवाद!

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!