मुझे प्रेम है सबसे ..
ईश्वर से ..
तुमसे ..उससे ....
फूलों से ..काँटों से ...
.स्वयं से...
अंतर्मन से ...अंतरात्मा से ..
हाँ ..हाँ .अपने मन से .. भी ..
तभी तो ...
उसे साफ़ रखने के लिए ...
जल तुलसी पर डालने हेतु ...
जब मैं ताम्बे के लोटे को..
मिट्टी से ..राख से ..
घिस-घिस कर मांजती हूँ ...
बंद आँख कर ..
उतरती हूँ अवचेतन मन में ..
दंभ से भरे वो पल याद कर ..
घिस-घिस कर ..
मन का मैल भी साफ़ करती हूँ ..
और .. अपने मन में पल रहे .. ...
आग से तपते अहंकार को ...
इस अद्भुत जल से ..
तुलसी पर जल डालते हुए ...
सर झुका कर ..
ठंडा कर देती हूँ
शांत करती हूँ ...!!
मैला मन साफ़ करने के लिए ...
प्रभु ,तुमसे ,और अपने मन से भी ...
पास रहने के लिए ..
ये प्रयास सतत करना पड़ता है ...
क्योंकि फेरी फेरी आती है ...
अहंकार की दुर्भावना .......
मिटा देती है प्रेम की सद्भावना ..
मन के ताम्बे को
निखारने के लिए-
एक महाभारत मन में
नित्य ही चलता है ...
तब जाकर कहीं ...
ताम्बे का लोटा चमकता है ....!!
ईश्वर से ..
तुमसे ..उससे ....
फूलों से ..काँटों से ...
.स्वयं से...
अंतर्मन से ...अंतरात्मा से ..
हाँ ..हाँ .अपने मन से .. भी ..
तभी तो ...
उसे साफ़ रखने के लिए ...
जल तुलसी पर डालने हेतु ...
जब मैं ताम्बे के लोटे को..
मिट्टी से ..राख से ..
घिस-घिस कर मांजती हूँ ...
बंद आँख कर ..
उतरती हूँ अवचेतन मन में ..
दंभ से भरे वो पल याद कर ..
घिस-घिस कर ..
मन का मैल भी साफ़ करती हूँ ..
और .. अपने मन में पल रहे .. ...
आग से तपते अहंकार को ...
इस अद्भुत जल से ..
तुलसी पर जल डालते हुए ...
सर झुका कर ..
ठंडा कर देती हूँ
शांत करती हूँ ...!!
मैला मन साफ़ करने के लिए ...
प्रभु ,तुमसे ,और अपने मन से भी ...
पास रहने के लिए ..
ये प्रयास सतत करना पड़ता है ...
क्योंकि फेरी फेरी आती है ...
अहंकार की दुर्भावना .......
मिटा देती है प्रेम की सद्भावना ..
मन के ताम्बे को
निखारने के लिए-
एक महाभारत मन में
नित्य ही चलता है ...
तब जाकर कहीं ...
ताम्बे का लोटा चमकता है ....!!
जाने कितने रण चलते हैं, मन ही मन में।
ReplyDeleteताम्बे का लोटा रोज़ चमकता है ....!!
ReplyDeleteअदभुत और अनुपम चमक है जी.
चम चम चमकने लगा है सारा ब्लॉग जगत
इसकी शानदार चमक से.
क्या कहूँ ,
ReplyDeleteजीवन दर्शन से पूरित मन की आवाज,
पावन भाव मन में संजोये गा रही मन का गीत है आज ..| बधाई ,इस गहरे भावों के सृजन हेतु |
bahu khoob likha aapane
ReplyDeletesach kaha ke man ke andar ka mail saaf nahi hota baar baar aa jata hain
mere blog par bhi aaiyega
umeed kara hun aapko pasand aayega
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
बहुत सुन्दर अनुपमा जी..
ReplyDeleteआत्मविश्लेषण और शुद्धिकरण बहुत ज़रुरी है..
सादर.
मन के ताम्बे को
ReplyDeleteनिखारने के लिए-
एक महाभारत मन में
नित्य ही चलता है ...
तब जाकर कहीं ...
ताम्बे का लोटा रोज़ चमकता है अनुपमा जी बहुत सुन्दर
सच्ची पूजा है आपकी ...
मन मैं .....
मन निखर गया है... और उतना ही निखरी हुई है आपकी यह कविता!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!!
ReplyDeleteएक महाभारत मन में
ReplyDeleteनित्य ही चलता है ...
तब जाकर कहीं ...
ताम्बे का लोटा रोज़ चमकता है ....!!
बहुत खूब.
फेरी फेरी आती हुई अहंकार की दुर्भावना को निर्मल जल से फेरी-हेरी स्वच्छ करना .. अनुपमा जी , कितनी सुन्दर बात कही है आपने.हाँ! जब सिल पर निशान पड़ सकता है तो मन पर क्यों नहीं..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट.......मन को मांझ कर ही शुद्ध तक पहुंचा जा सकता है |
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमन के ताम्बे को
निखारने के लिए-
एक महाभारत मन में
नित्य ही चलता है ...
तब जाकर कहीं ...
ताम्बे का लोटा रोज़ चमकता है ....!!
क्या कहने
प्रभु ,तुमसे ,और अपने मन से भी ...
ReplyDeleteपास रहने के लिए ..
ये प्रयास सतत करना पड़ता है ...
क्योंकि फेरी फेरी आती है ...
अहंकार की दुर्भावना .......
मिटा देती है प्रेम की सद्भावना ..बहुत ही बढ़िया , सीखने योग्य
बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत सुंदर साधना के सूत्र बताती रचना..
ReplyDeleteदंभ से भरे वो पल याद कर ..
ReplyDeleteघिस-घिस कर ..
मन का मैल भी साफ़ करती हूँ ..
बहुत सुन्दर रचना... वाह! वाह!
सादर बधाई..
...कमाल की रचना...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
प्रभु ,तुमसे ,और अपने मन से भी ...
ReplyDeleteपास रहने के लिए ..
ये प्रयास सतत करना पड़ता है ...
क्योंकि फेरी फेरी आती है ...
अहंकार की दुर्भावना .......
मिटा देती है प्रेम की सद्भावना ..
vah Anupama ji bahut hi sundar bhav badhai .... mere blog pr amantran sweekaren
बहुत खूब ... कितना कुछ जीवन का सार जोड़ लिया इस एक ताम्बे के लोटे के साथ ... लाजवाब ...
ReplyDeleteशब्दों की अनवरत और गहन अभिवयक्ति........ और सार्थक पोस्ट.....
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteman taambe ke laute jaisaa hee to hai
aatm manthan aur aatm anveshan se
chamk jaataa hai
वाह ...बहुत बढिया।
ReplyDeleteबहुत खूब! गहन चिंतन की सहज और सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमन के ताम्बे को
ReplyDeleteनिखारने के लिए-
एक महाभारत मन में
नित्य ही चलता है ...
तब जाकर कहीं ...
ताम्बे का लोटा चमकता है ....!!.............वाह बहुत खूब
मन के अहम को मारना ही तो बेहद कठिन हो जाता हैं ....
kavita bahut hi adbhud hai ..bahut hi sundar hai ...aur kuch lines hai jinka koi jawab nahi आग से तपते अहंकार को ...
ReplyDeleteइस अद्भुत जल से ..
तुलसी पर जल डालते हुए ...
सर झुका कर ..
ठंडा कर देती हूँ
शांत करती हूँ ...!!
summit of imagination ...so nice
सत्य वचन ...
ReplyDeletebahut sundar..Vaah ..kitni sundar baat ..man ke tambe ke lote ko satat saaf karna padhta hai ..unda... ati sundar kavita
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा अभिव्यक्ति! बधाई!
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आकर का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति बहुत बढ़िया सार्थक रचना,....बेहतरीन पोस्ट
ReplyDeletewelcome to new post --"काव्यान्जलि"--
पूजा करते वक़्त पूजा का लोटा ही साफ़ न हो ध्यान नहीं लगता पूजा में ....!!आभार आप सभी का ...मेरे भावों से जुड़ने के लिए .....
ReplyDeleteअहंकार से उपजी दुर्भावनाओं को हटाने के लिए मांजना पड़ता है सतत .. इस तरह प्रयासरत हो कर ही प्रेम बनाये रखा जा सकता है .. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ... आभार
ReplyDeleteसुंदर कविता, प्रेरक और व्यावहारिक संदेश। धन्यवाद!
ReplyDelete