आज सोच में डूबी ..
सोचती हूँ ..क्या हूँ मैं ...?
जो मैं हूँ वो हूँ ....या ...?
तुम्हारी सोच हूँ मैं ....?
हाँ ... तुम्हारी सोच ही तो हूँ .......
जब खुश हो तुम...
नीले आसमान पर ..
खूबसूरत रंगों की तरह ...
हंसती मुस्काती ...
तुम्हारे सुंदर भावों की तरह ...
कितनी सुंदर दिखतीं हूँ मैं ...
अपने भाव देखते हो तुम मुझमे ..
क्षितिज की तरह.........
हवा सी बहती हुई ... ....
मन को ख़ुशी देती हुई ... ...
जब जीने लगते हैं..
मुझमे तुम्हारे विचार ..
और नहीं चल पाती मैं -
तुम्हारे अनुसार ......
तब बदल जाते हो तुम ..
आसमान पर
बदले हुए रंगों की तरह ...
तस्वीर बदल जाती है मेरी,
तुम्हारे मन में भी ......
तुम्हारी सोच की तरह बदली हुई ....!!
अपनी सोच के सांचे में..
अपने मन के ढांचे में ढाला है तुमने मुझे ...
हाँ यथार्थ नहीं ..
तुम्हारी बदली हुई सोच
हो गयी हूँ मैं अब ....!!
यथार्त में तो ..
मैं जैसी कल थी ...
वैसी ही आज भी हूँ ...
मैं नहीं बदली ...
अब सोच बदल गयी है तुम्हारी....
इसीलिए ...
अब दृष्टि भी बदल गयी है तुम्हारी ..
तभी तो मैं हूँ दूर ...
तुम से दूर ...!!
अभी भी ..
क्षितिज की तरह ही ...
हवा सी बहती हुई ...
बहुत दूर हो गयी हूँ मैं ......
सोचती हूँ ..क्या हूँ मैं ...?
जो मैं हूँ वो हूँ ....या ...?
तुम्हारी सोच हूँ मैं ....?
हाँ ... तुम्हारी सोच ही तो हूँ .......
जब खुश हो तुम...
नीले आसमान पर ..
खूबसूरत रंगों की तरह ...
हंसती मुस्काती ...
तुम्हारे सुंदर भावों की तरह ...
कितनी सुंदर दिखतीं हूँ मैं ...
अपने भाव देखते हो तुम मुझमे ..
क्षितिज ....!! |
हवा सी बहती हुई ... ....
मन को ख़ुशी देती हुई ... ...
जब जीने लगते हैं..
मुझमे तुम्हारे विचार ..
और नहीं चल पाती मैं -
तुम्हारे अनुसार ......
तब बदल जाते हो तुम ..
आसमान पर
बदले हुए रंगों की तरह ...
तस्वीर बदल जाती है मेरी,
तुम्हारे मन में भी ......
तुम्हारी सोच की तरह बदली हुई ....!!
अपनी सोच के सांचे में..
अपने मन के ढांचे में ढाला है तुमने मुझे ...
हाँ यथार्थ नहीं ..
तुम्हारी बदली हुई सोच
हो गयी हूँ मैं अब ....!!
यथार्त में तो ..
मैं जैसी कल थी ...
वैसी ही आज भी हूँ ...
मैं नहीं बदली ...
अब सोच बदल गयी है तुम्हारी....
इसीलिए ...
अब दृष्टि भी बदल गयी है तुम्हारी ..
तभी तो मैं हूँ दूर ...
तुम से दूर ...!!
अभी भी ..
क्षितिज की तरह ही ...
हवा सी बहती हुई ...
बहुत दूर हो गयी हूँ मैं ......
वाह वाह अनुपमा जी...
ReplyDeleteसच है...नज़र का फेर होता है सब...
बहुत खूब.
आकाश और धरती का मिलन है क्षितिज, मिलन तो यहाँ पर भी है।
ReplyDeleteकई बार इंसान नहीं बदलता , नजर बदल जाती है . और सब कुछ बदला लगता है !
ReplyDeleteसुन्दर !
जब बदल जाते हो तुम ..
ReplyDeleteआसमान पर
बदले हुए रंगों की तरह ...
तस्वीर बदल जाती है मेरी,
तुम्हारे मन में भी ......
तुम्हारी सोच की तरह बदली हुई ....!!
मैं तो वही होती हूँ, फिर ऐसा क्यूँ ..
अब दृष्टि भी बदल गयी है तुम्हारी ..
ReplyDeleteतभी तो मैं हूँ दूर ...
तुम से दूर ...!!
सुन्दर और अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ..
अब सोच बदल गयी है तुम्हारी....
ReplyDeleteइसीलिए ...
अब दृष्टि भी बदल गयी है तुम्हारी ..
तभी तो मैं हूँ दूर ...
तुम से दूर ...!!
अभी भी ..
क्षतिज की तरह ...
बहुत दूर हो गयी हूँ मैं ......
:))...
kya kahun, bahut pyare se shabd..
क्षितिज़ पर ही मिलन संभव है।
ReplyDeletebhaavo ka ek sundar sayjan dikhta puri rachna me.....
ReplyDeleteजब बदल जाते हो तुम ..
ReplyDeleteआसमान पर
बदले हुए रंगों की तरह ...
तस्वीर बदल जाती है मेरी,
तुम्हारे मन में भी ......
तुम्हारी सोच की तरह बदली हुई ....!! बहुत सही ......
इस रचना में जो आत्मीयता के साथ शिकायत है वह मन को छूता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ..
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeleteअनुपम भावों का सुन्दर अहसास
कराती हुई.
आभार.
अपनी सोच के सांचे में..
ReplyDeleteअपने मन के ढांचे में ढाला है तुमने मुझे ...
हाँ यथार्थ नहीं ..
तुम्हारी बदली हुई सोच
हो गयी हूँ मैं अब ....!!
अर्थ पूर्ण विचारों की सुन्दर अभिव्यक्ति,
vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
खूबसूरती से मन में आये भावों को उकेरा है .. सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete"कभी जब नहीं चल पाती तुम्हारे मुताबिक मैं ...
ReplyDeleteरंग बदल जाते हैं क्षितिज के ..!!"- bemisaal kalpana hai..badhaai anupamaji.
अर्थ पूर्ण विचारों की सुन्दर अभिव्यक्ति|धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी
मन में उमड़ते भावों को अभिव्यक्ति किया है ... उम्दा रचना ...
ReplyDeleteतब बदल जाते हो तुम ..
ReplyDeleteआसमान पर
बदले हुए रंगों की तरह ...
तस्वीर बदल जाती है मेरी,
तुम्हारे मन में भी ......
तुम्हारी सोच की तरह बदली हुई ....!!
बहुत सुन्दर पोस्ट|
अपनी सोच के सांचे में..
ReplyDeleteअपने मन के ढांचे में ढाला है तुमने मुझे ...
हाँ यथार्थ नहीं ..
तुम्हारी बदली हुई सोच
हो गयी हूँ मैं अब ....!!
यथार्त में तो ..
मैं जैसी कल थी ...
वैसी ही आज भी हूँ ...
बहुत सहजता से बदलती हुई सोच के सतह बदलते हुए सम्बन्धों को दर्शाया है आपने, किसी ने ठीक कहा है कि हम दूसरों के आईने में खुद को ही देखते हैं.
बहुत ही गहन भावनाओं के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteदृष्टि , सोच , सांचा- ढांचा ..आदि सब काल के सापेक्ष परिवर्तनशील हैं . इन सबके बीच कोई शाश्वत है तो हमारा होना और अपने निकष पर इन्हें केवल देखना भर ही है . कर्ता से विमुख होकर . .. अपरिवर्तनशील.. क्षतिज की तरह..हवा सी बहती हुई..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है |
ReplyDeleteतब बदल जाते हो तुम ..
ReplyDeleteआसमान पर
बदले हुए रंगों की तरह .
बहुत सुंदर भाव संजोये है और उनकी अभिव्यक्ति भी बहुत सुंदर ...
man me umadte bhavo ko bakhubi abhivyakt kiya hai ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना,सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया लिखा पसंद आया,....
ReplyDeleteनई रचना-काव्यान्जलि--हमदर्द-
मै समर्थक बन गया हूँ आप भी बने तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी,
sach kaha...insaan nahi badalte bas soch badal jati hai.kabhi2 jo dil ke bahut pas hota hai vo hi dur chala jata hai...sundar prastuti...
ReplyDeleteमिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
मेरे भावों से निकट हैं आप ....सभी गुनी जानो का आभार ....
ReplyDeleteउजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो ...
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ....!!