रवींद्रनाथ टैगोर ने भी परमब्रह्म तक पहुँचने के लिए संगीत को ही एकमात्र साधन कहा है --'' संगीत हमारी चित्तवृत्ति को अंतर्मुखी बनाकर हमें आत्मस्वरुप का नैसर्गिक बोध कराता है और आत्मस्वरुप का यह बोध ही मनुष्य को परमतत्व से जोड़ता है।"
''अनुभूति को अनुभूत करने में ही उसका अस्तित्व है ''
निसर्ग के इन्ही फूलों में रची बसी,
इन्हीं फूलों से
उड़कर,
उस आमद का करती
हूँ स्वागत,
उस सुरभि से ,
जोड़ जोड़ शब्द ,
सजती है मेरी
कल्पना,
भरती रंग मन अल्पना ,
उठती है …,चलती है
और फिर ,
ईश्वर की कृपा बरसती है ,
और....
और .......
ईश्वर की कृपा बरसती है ,
और....
और .......
अनायास नृत्य
करती है,
मेरी पंगु कविता
.....!!
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 05 - 2015 को चर्चा मंच की चर्चा - 1975 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग जी ,हार्दिक आभार मेरी रचना को शामिल करने हेतु !!
Deleteसच कहा आपने। जब ईश्वर की कृपा बरसती है तो सब कुछ सहज व आनंद में डूबा हुआ दिखता है.....
ReplyDeleteया...दिव्य भावनाओं से रची कविता..
ReplyDeleteबहुत शानदार ,आपको बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुम्दर अनुपमा जी,
ReplyDeleteभाव-अनुभूति.
बहुत उम्दा
ReplyDelete