एक माँ को नमन…
जिसकी मासूम उदास आँखों से भी,
झांकती है एक हँसी …!!
वो अभी भी देखती है कुछ ख़ाब,
सूनी सी आँखों में रंग भर देते हैं जो ,
और फिर उसके पौधों का रंग हो उठता है ,
और भी हरा ,
उसके बाग़ की हर क्यारी में होते हैं
फूल ही फूल ,
उसकी कविता में होते हैं
शब्द ही शब्द
उसकी बातों में होते हैं भाव ही भाव ,
उसकी अल्पना में होता है ,
पलाश का रंग .....
इस तरह खिलती है
खिलखिलाती है ...
और फिर से,
उसकी मासूम उदास आँखों में से
झांकती है एक हँसी ...
जिसकी मासूम उदास आँखों से भी,
झांकती है एक हँसी …!!
वो अभी भी देखती है कुछ ख़ाब,
सूनी सी आँखों में रंग भर देते हैं जो ,
और फिर उसके पौधों का रंग हो उठता है ,
और भी हरा ,
उसके बाग़ की हर क्यारी में होते हैं
फूल ही फूल ,
उसकी कविता में होते हैं
शब्द ही शब्द
उसकी बातों में होते हैं भाव ही भाव ,
उसकी अल्पना में होता है ,
पलाश का रंग .....
इस तरह खिलती है
खिलखिलाती है ...
और फिर से,
उसकी मासूम उदास आँखों में से
झांकती है एक हँसी ...
sachhi bat .....
ReplyDeleteमाँ का हर बात ही निराली है..वह देना जानती है..लुटाना भी..वह अन्नपूर्णा है..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteशुभ प्रभात जी
ReplyDeleteराम राम जी
बहुत ही सुंदर लिखा है