यही थे मन के विचार आज से पांच वर्ष पूर्व और आज भी यही है जीवन …… कितना सुखद लग रहा है आज ,आप सभी के साथ का यह पांच वर्ष का सफर ....
अर्थ की अमा
समर्थ की आभा है ,
अनुग्रह मेरा स्वीकार कीजिये ,
आज दो शब्द अपने ज़रूर मुझे दीजिये …
मन की सरिता है
अर्थ की अमा
समर्थ की आभा है ,
अनुग्रह मेरा स्वीकार कीजिये ,
आज दो शब्द अपने ज़रूर मुझे दीजिये …
मन की सरिता है
भीतर बहुत कुछ
संजोये हुए ..
कुछ कंकर ..
कुछ पत्थर-
कुछ सीप कुछ रेत,
कुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग ....
कुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग ....
तो कुछ पल ..
कल कल कल अति तेज ,
मन की सरिता है ,
मन की सरिता है ,
कभी ठहरी ठहरी रुकी रुकी-
निर्मल दिशाहीन सी....!
कभी लहर -लहर लहराती-
चपल -चपल चपला सी.....!!
बलखाती इठलाती .. ...
मौजों का राग सुनाती ....
मन की सरिता है.
मन की सरिता है.
फिर आवेग जो आ जाये ,
गतिशील मन हो जाये -धारा सी जो बह जाए ,
चल पड़ी -बह चली -
अपनी ही धुन में -
कल -कल सा गीत गाती ...
कल -कल सा गीत गाती ...
राहें नई बनाती ....,
मन की सरिता है -
नगर- नगर झूम झूम
छल-छल है बहती जाती ..जीवन संगीत सुनाती -----
मन की सरिता है !!!
…………………………………………।
अनुग्रहित हूँ ,अभिभूत हूँ
अनुपम त्रिपाठी
सुकृती
चलती रहे यात्रा... बहती रहे शब्द सरिता!
ReplyDeleteमन की सरिता सदैव लहराती रहे, यही शुभकामना है। बधाई आपको।
ReplyDeleteअनुपमा जी, पांच वर्षों के निर्विघ्न यात्रा के के बधाई! आपके नाम के अनुरूप ही आपके रचनाओं की ताजगी, भाव और उनकी उर्जा अनुपमेय है. आगे की यात्रा के लिए शुभकामनायें. आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस मत के थे कि "कविता से मनुष्य भाव की रक्षा होती है". आपकी कविताओं में प्रकृति और परमात्मा से समीपता और उसके बीच जीवन का आनंद बखूबी उभरता है. पढ़कर अच्छा लगता है.
ReplyDeleteइसी मौके पर कुछ अनूठा साझा कर रहा हूँ. बीबीसी पर कुछ वर्षों पूर्व यह प्रोग्राम आया था. मैंने इसे सहेज लिया था. इसमें कई ऐसे कवियों की आवाजें है जिन्हें पहली बार सुना था . सुनकर बहुत आनंद आया था. आपसे साझा करता हूँ.
https://dl.dropboxusercontent.com/u/55921821/poets_121226_poets_bbc_archive_vv_au_bb.mp3
ये सरिता यूँ ही निर्विघ्न बहती रहे ... पांच वर्ष का लम्बा सफ़र और भी कई पांच वर्ष पूरे करे ... पाठकों को आपकी रचनाओं की ताजगी का एहसास हमेशा होता रहे ... आमीन ... जय हनुमान ...
ReplyDeleteबधाई. रचनाओं की सरिता इसी तरह बहती रहे
ReplyDeleteहार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (06-04-2015) को "फिर से नये चिराग़ जलाने की बात कर" { चर्चा - 1939 } पर भी होगी!
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abahr hriday se Shastri ji !!
Deleteबहुत ही सुंदर और शानदार रचना।
ReplyDeleteह्रदय से आभार आप सभी का !!
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