लीला धरते शब्द लीलाधर .....!!
कभी जुलाहा बन
बुनते अद्यतन मन ....
समय से जुड़े ,
बनाते विश्वसनीय सेतु,
कभी खोल गठरी कपास की
बिखरे तितर बितर,
चुन चुन फिर सप्त स्वर,
शब्द उन्मेष
गाते गुनगुनाते,
बुनते धानी चादर
गुनते जीवन
अद्यतन मन.......!!
शब्द फिर सहर्ष अभिनंदित,
स्वाभाविक स्वचालित,
सुलक्षण सुकल्पित,
रंग भरते मन
पुलक आरोहण ,
मनाते उत्स
रचते सत्व ,
लीला धरते शब्द लीलाधर .....!!
कभी जुलाहा बन
बुनते अद्यतन मन ....
समय से जुड़े ,
बनाते विश्वसनीय सेतु,
कभी खोल गठरी कपास की
बिखरे तितर बितर,
चुन चुन फिर सप्त स्वर,
शब्द उन्मेष
गाते गुनगुनाते,
बुनते धानी चादर
गुनते जीवन
अद्यतन मन.......!!
शब्द फिर सहर्ष अभिनंदित,
स्वाभाविक स्वचालित,
सुलक्षण सुकल्पित,
रंग भरते मन
पुलक आरोहण ,
मनाते उत्स
रचते सत्व ,
लीला धरते शब्द लीलाधर .....!!
जीवन के शब्द-शब्द में चमत्कार, सम्मोहन व आनंद है। सुन्दर भाव संयोजन।
ReplyDeleteमन कवि हो तो शब्द प्राण बन जाते हैं. जब-तब आनंद का निर्माण कर जाते हैं. आह्लादित करती है यह रचना.
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर भाव और उतने ही सार्थक शब्द बिम्ब...
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
ReplyDeletehriday se abhar shastri ji !!
ReplyDeleteशब्द और ध्वनि ... जीवन और सुजान अवस्था को माया लोग में खींच ले जाते हैं ... पता नहीं ये लीलाधर की लीला है या कुछ और ...
ReplyDeleteशब्द और भाव का सुंदर संगम
ReplyDeleteलीला धरते शब्द लीलाधर ...वाह!!
ReplyDeleteशब्दों को बोलते देर नहीं लगी जब लीलाधर की माया हो ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...
बहुत सुन्दर रचना ...
ReplyDelete