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शब्द की उस आकृति को
भाव की उस स्वकृति को ,
शब्द शब्द गढ़ दूँ अगर तो
भाव कैसे पढ़ सकोगे .....?
जीवन की यह वेदना है ,
जब नहीं संवाद न संवेदना है ,
है जगत की रीत यह तो ,
दो घड़ी की प्रीत यह तो,
जल भरा यह कलश मेरा ,
भाव रंग अपने भरोगे ....!!
*************
स्याही से
लिखते हुए
उज्ज्वल भाव भी
स्याह क्यों दिखते हैं ......?
दो घड़ी की प्रीत यह तो,
जल भरा यह कलश मेरा ,
भाव रंग अपने भरोगे ....!!
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स्याही से
लिखते हुए
उज्ज्वल भाव भी
स्याह क्यों दिखते हैं ......?
सार्थक चर्चा में मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदय से आभार दिलबाग जी !!
ReplyDeleteउज्ज्वल भाव श्याम रंग में रँग कर गूढ़-गहन हो जाते हैं !
ReplyDeleteबूँद-बूँद में भाव। यही तो जीवन है।
ReplyDeleteकागज पर उतरते ही सच झूठ हो जाता है...सच इतना सूक्ष्म है कि कागज पर उतर ही नहीं पता कि खो जाता है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर "है जगत की रीत यह तो, दो घड़ी की प्रीत यह तो."
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