नहीं ,
कोई आवाज़ नहीं है उसकी ,
न ही कोई रंग है ,
नहीं ,
कोई रूप नहीं है उसका ,
पर वो बुलंद है ...!!
मेरी आस में
मेरी सांस में
सोया जागा
एक तार
विद्यमान है ...
हाँ है ज़रूर ,
मुझमें शांत एकांत
उतना ही ...
जितना तुममे चंचल प्रबल ...
हाँ
वो है ज़रूर ....!!
मुझमें शांत-एकांत, मेरा शून्य-मेरा शिखर सब तुझमें ही है। मैं मंद-तेज से परे नैसर्गिक, अबोध आलोक तुझमें हूँ।
ReplyDeleteजितना चंचल प्रबल तुममें, उतना शांत प्रशांत मुझमें
ReplyDeleteहाँ वह है ज़रूर।
बहुत सुंदर।
निराकार इश्वर तो सब में है ... चंचल, शांत या हर रूप में ...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना ...
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर दिव्य भावों का सृजन...यह विश्वास ही उस तक ले जाता है...
ReplyDeleteBahut sunder aur bhavpurna rachna
ReplyDeletethanks.