पूनम का निकला है चाँद...
थम गई है रात ...
चांद को निर्निमेष निहार ...
भीग रही है रात ....
लहरों सी लहरें ...
मन मे उठती हैं ......
तरंगों सी उमंगें ....
सींचती है रात ....
ये कैसा सन्नाटा है ...
के गाती है प्रीत ...
ख़्वाहिशों का दामन ..
भिगोती है रात ....!!
कल कल बहता नदिया का जल ..
तिस पर गिरती ...टिपिर टिपिर ...
बूंदों की ये आवाज़ ....
जैसे बज रहा हो कोई साज़ .....!!
मूंद कर पलकों को...
चांद भर नयनों मे ..
भीगी भीगी सी ..
प्रीत भर लेती है रात ....!!
स्निग्ध चांदनी में डूबी ...
भीनी चंदरिया ओढ़े ...
कैसी खिलती है रात ..
कैसी भीगती है रात ...!!
थम गई है रात ...
चांद को निर्निमेष निहार ...
भीग रही है रात ....
लहरों सी लहरें ...
मन मे उठती हैं ......
तरंगों सी उमंगें ....
सींचती है रात ....
ये कैसा सन्नाटा है ...
के गाती है प्रीत ...
ख़्वाहिशों का दामन ..
भिगोती है रात ....!!
कल कल बहता नदिया का जल ..
तिस पर गिरती ...टिपिर टिपिर ...
बूंदों की ये आवाज़ ....
जैसे बज रहा हो कोई साज़ .....!!
मूंद कर पलकों को...
चांद भर नयनों मे ..
भीगी भीगी सी ..
प्रीत भर लेती है रात ....!!
स्निग्ध चांदनी में डूबी ...
भीनी चंदरिया ओढ़े ...
कैसी खिलती है रात ..
कैसी भीगती है रात ...!!
बहुत प्यारी कविता अनुपमा जी...
ReplyDeleteटाइपिंग त्रुटि है एक-लेहरों को लहरों कर लीजिए..
:-)
सस्नेह
अनु
आभार अनु ...ठीक कर दिया है ...!!
Deleteमुझे ऐसी रात से सहानुभूति है !
ReplyDeleteस्निग्ध चाँदनी बिखेर रही है आपकी सुन्दर काव्य-कृति .. भींग रहा है मन..बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteकोमल अनुभूतियों से पूर्ण चांदिनी रात का रससिक्त वर्णन . ऐसी रात में रिमझिम वृष्टि,जाने किस परीलोक में ले जाती है कविता . ह्रदय गदगद हुआ.
ReplyDeletedudh si bahti raat aur bhaw
ReplyDeleteस्निग्ध चांदनी में डूबी ...
ReplyDeleteभीनी चंदरिया ओढ़े ...
कैसी खिलती है रात ..
कैसी भीगती है रात ...!!
भावमय करते शब्द ... अनुपम प्रस्तुति।
अच्छी रचना
ReplyDeletebadi hi pyari hai ye raat ....................
ReplyDeleteस्निग्ध चांदनी में भीगी - भीगी सी सुन्दर सी रचना...
ReplyDeleteस्निग्ध चांदनी में डूबी ...
ReplyDeleteभीनी चंदरिया ओढ़े ...
कैसी खिलती है रात ..
कैसी भीगती है रात .
कितनी खूबसूरत बात कहतीं हैं आप कविता में...
बारिश का मौसम लगता है आपके ब्लॉग पर भी चल रहा है, बहुत सुन्दर :) :)
रात को भी राशन कर दिया आपके शब्दों ने.
ReplyDeleteशायद ये रौशन होगा शिखाजी ...:))तंकण त्रुटि लग रही है ...
Deleteचाँदनी रात हो नदी का किनारा हो तो ऐसा ही समां बंध जाता है..बहुत भावपूर्ण कविता..
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसादर बधाई ।।
भिगोती हुई.. भावो में स्निग्ध करती हुई कविता...
ReplyDeleteप्रेम की परिभाषा ही कुछ ऐसी हैं ....बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर.... वाह!
ReplyDeleteटिप टिप बूंदें बोलतीं, नदियों से ये बात।
बारिश में है भीजता, चाँद, अनोखी रात।
सादर।
नदी का किनारा हो ,पूनम की हो रात
Deleteचाँद देखकर हम, करते नयनो से बात,,,,,
खूबसूरत प्रस्तुति ।
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
बहुत कोमल भावों से सजी रचना...
ReplyDeleteपूनम का मनभावन चाँद !!!
ये कैसा सन्नाटा है ...
ReplyDeleteके गाती है प्रीत ...
ख्वाइशों का दामन ..
भिगोती है रात ....!
life delighted through your lines
स्निग्ध चांदनी में डूबी ...
ReplyDeleteभीनी चंदरिया ओढ़े ...
कैसी खिलती है रात ..
कैसी भीगती है रात ...!!
मन को भीगो दिया इस भीगी चाँदनी रात ने ...
बहुत सुंदर ....!!
भीगी - भीगी प्यारी सी रात
ReplyDeleteआपकी प्यारी रचना
और रचना में मिठास
बहुत - बहुत सुन्दर
प्यारी रचना...
:-)
अनुपमा जी रात का बहुत ही मधुर रससिक्त चित्रण है । सारे बिम्ब( दृश्य और ध्वनि बिम्ब) मिलकर धरा से गगन को रस से भिगो देते हैं । चित्र संयोजन इसे और आह्लादकारी बना देता है । आपके शब्दों की तूलिका कमाल की है ।
ReplyDeleteअति सुंदर....
ReplyDeleteये कैसा सन्नाटा है ...
ReplyDeleteके गाती है प्रीत ...
ख्वाइशों का दामन ..
भिगोती है रात ....!!
बहुत सुंदर रचना .... पढ़ते पढ़ते जैसे मन भीग सा गया ...
bahut badhiya shabd chitran ....
ReplyDeleteजब चाँद है तो चकोर भी होगा ... है न दी ... ;-)
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है प्लस ३७५ कहीं माइनस न कर दे ... सावधान - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बहुत आभार शिवम ...बुलेटिन पर कविता लेने के लिये ...!!
Delete:) निश्चय ही ...चकोर मन होता है ...चांदनी मे भीगता हुआ ,तभी तो कविता का सृजन होता है ....!!
लहरों सी लहरें ...
ReplyDeleteमन मे उठती हैं ......
तरंगों सी उमंगें ....
सींचती है रात ....
और फिर.....
जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात....!!
लहरों सी लहरें ...
ReplyDeleteमन मे उठती हैं ......
तरंगों सी उमंगें ....
सींचती है रात ....
और फिर......
जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात....!
वर्षा के साथ टिपिर- टिपिर बूंदों से सजी रात ...
ReplyDeleteप्यारी कविता !
बहुत ही सुंदर ..सरल भाव !
ReplyDeleteतन-मन को भिगोती
ये चांदनी रात ...
रचना के लिए बधाई स्वीकारे !
रात भि अपने विभिन्न रंगों में रंग बिखेरती है, किंतु कहीं न कहीं एक नमी लिए होती है।
ReplyDeleteकोमल भावो से सजी एक खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteकविता के भाव ऐसे जैसे रात की कालिमा को तिरोहित कर रहे हों।
ReplyDeleteसुन्दर..
ReplyDeleteआभार आप सभी का ....
ReplyDeleteमधुरिम!
ReplyDeleteअति सुन्दर और भावपूर्ण।
ReplyDeleteप्रभावशाली रचना ...
ReplyDeleteआभार !