ओ पथिक ...
क्या ज्ञान है .......कौन हो तुम ....?
कहाँ से आये हो..?
माया में ...क्यों इतना भरमाये हो ...?
किस बात की शीघ्रता है ...?
कुछ साथ नहीं जायेगा ...
मुझ माटी में ही तो मिलना है ...
अरे ...रुको ......रुको ...
सुनो तो ....
माटी में मिलने से पहले ..
माटी को ही कुछ दान देते जाओ ...
और कुछ नहीं ..
बस ...थोड़ा सा मान देते जाओ ...
रंग दो मुझे इस सावन हरा ...
पंच तत्व से बनी ...
भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....
************************************************************************************
अगर सम्भव हो इस वर्ष कुछ वृक्ष ज़रूर लगायें........!!!
क्या ज्ञान है .......कौन हो तुम ....?
कहाँ से आये हो..?
माया में ...क्यों इतना भरमाये हो ...?
किस बात की शीघ्रता है ...?
कुछ साथ नहीं जायेगा ...
मुझ माटी में ही तो मिलना है ...
अरे ...रुको ......रुको ...
सुनो तो ....
माटी में मिलने से पहले ..
माटी को ही कुछ दान देते जाओ ...
और कुछ नहीं ..
बस ...थोड़ा सा मान देते जाओ ...
रंग दो मुझे इस सावन हरा ...
पंच तत्व से बनी ...
भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....
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अगर सम्भव हो इस वर्ष कुछ वृक्ष ज़रूर लगायें........!!!
bhuvan ki pyari si dhara....:)
ReplyDeletejarur ... waise hamne to baag bana rakha hai:)
बाग तो बहुत अच्छी बात है पर आज के परिपेक्ष मे वृक्षारोपण बहुत आवश्यक है ...!!
Deleteअगर हो सके तो वृक्षारोपण करवायें....और फिर उन वृषों की रक्षा भी करें ....यही आज हमारे समाज की क्या बल्कि पूरे विश्व की ज्वलंत समस्या है ...
आभार मुकेश आपने रचना पढ़कर विचार भी किया ...!!
रंग दो मुझे इस सावन हरा ...
ReplyDeleteपंच तत्व से बनी ...
भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....
वादा रहा पांच पेड़ लगाने का .....
बहुत बहुत आभार ...रमाकांत जी ...!!
Deleteहृदय से ...!!
माटी के ह्रदय की पुकार को सुन्दर आह्वान दिया है..माटी मे मिलने से पहले हरा कर जाना है.. .
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधरा का आर्तनाद शायद हम तभी सुनेंगे जब हमारे ऊपर आएगी . कम होते वन सम्पदा और वृक्षों के करण मानव जीवन एक ब्लैक होल की तरफ बढ़ रहा है. उम्मीद है हम सचेत होगे .
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत आभार शास्त्री जी ...!!
Deleteसुन्दर सन्देश
ReplyDeleteमान प्रकृति का रखना होगा।
ReplyDeleteओ पथिक ...क्या जानते हो ...
ReplyDeleteकौन हो तुम ....?
कहाँ से आये हो..?
माया मे ...क्यों इतना भरमाये हो ...?
किस बात की जल्दी है ...?..................ये ही वो सवाल हैं जो जिंदगी को मुश्किल बनाये हुए हैं ........सटीक रचना
माटी में मिलने से पहले
ReplyDeleteमाटी का क़र्ज़ चुकाना है
नीली सी धरा का आँचल
हरा-भरा कर जाना है...
बहुत सुन्दर सन्देश...
सुंदर रचना... सार्थक आवाहन....
ReplyDeleteसादर।
सुंदर संदेश देती रचना
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ती :-)
अनुपम रचना अनुपमा की ताना बाना कसाव दार .ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया ,...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति.....सार्थक सन्देश
ReplyDeleteपर्यावरण की रक्षा हित सार्थक एवं सशक्त प्रस्तुति ! वृक्षारोपण की मात्र रस्म अदायगी ही नहीं वरन उनकी रक्षा कर प्रकृति से अनन्य प्रेम की भावना को भी पोषित करना होगा तभी हमारी यह प्यारी सी नीली धारा हरी हो पायेगी !
ReplyDeleteप्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर पर" आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteसार्थक संदेश देती सुंदर रचना
ReplyDeleteधरती की हम नहीं सुनेंगे,
ReplyDeleteफिर-फिर केवल सिर धुनेंगे !!
उम्दा संदेश!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... धरती की मधुर पुकार ... सार्थक चिंतन ...
ReplyDeleteसार्थक सन्देश...पर्यावरण की रक्षा
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अंदाज़ अपनी बात कहने का .....वाकई धरती की यह करबद्ध इल्तिजा है .......
ReplyDeleteसत्य कहा आपने की अंततोगत्वा हमें इसी धरा में मिल जाना है
ReplyDeleteतो क्यूँ न इसे अपने जीवनकाल में कुछ हरियाली दे जाएँ !!
सुंदर संदेश, सुंदर रचना !!
Sundar Kavita.
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleterealy a meaningful post with a great message
ReplyDeleteएक अलग से अंदाज़ में खुबसूरत सी रचना...
ReplyDeleteपंच तत्व से बनी ...
ReplyDeleteभुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....
क्या बात है ... अनुपम चित्रण सशक्त भाव ... आभार
कुछ साथ नहीं जायेगा ...
ReplyDeleteमुझमें ही तो मिलना है ...
माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदेगी मोहे
इक दिन ऐसा होयगा मैं रौंदूंगी तोहे .....
आभार आप सभी का ....धरा की पुकार सुनने के लिये ....!!!!
ReplyDeleteशायद हम इस माँ को भी भूल गए ...
ReplyDeleteरंग दो मुझे इस सावन हरा ...
ReplyDeleteपंच तत्व से बनी ...
भुवन की मैं हूँ नीली सी धरा ....
.......................
बहुत ही सुन्दर और सार्थक पोस्ट.....
waah ! satyam....shivam....sundram !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनुपमा जी....
ReplyDeleteधरा का मान हम न करेंगे तो उसका स्नेह कैसे पायेंगे भला.....
हम तो खूब पेड़ लगाते हैं......पड़ोसियों का सामना भी नहीं छोड़ा :-)
प्यारी रचना ...सार्थक सदेश..
सस्नेह
अनु
भुवन-कोष में नीलवर्णा धरा के ब्रह्मांडीय सत्य और उसकी हम सब से की गई अपेक्षाओं का सुन्दर संक्षिप्त निरूपण.
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