बसता फिर अनजान नगर में ..
मील के पत्थर अनेकों ..
राह की शोभा बढाते ..
मधुर भावों से सुसज्जित ..
गीत तेरा साथ देते ...!!
बीच काँटों की पड़ी
इस ज़िन्दगी में ..
फूल की माला बनाते ...!!
ढोल नगाड़े लेकर संग में ...
जंगल में मंगल करता चल ...
आगे ही आगे बढ़ता चल ...!!
जंगल में मंगल हो कैसे ..
गीत सुरीला संग हो जैसे ...
धुन अपनी ही राग जो गए ..
संग झांझर झंकार सुनाये ...
सुन-सुन विहग भी बीन बजाये ..
घिर-घिर बदल रस बरसाए ..
टिपिर- टिपिर सुर ताल मिलाये ...
मन मयुरवा पंख फैलाये ..
पुलकित व्योम सतरंग दिखाए ..
विविध रंग जीवन दर्शाए ...
धानी सी ओढ़े है चुनरिया ..
संग तेरे ये कौन गुजरिया ..
ले कर इसको -
संग-संग अपने ...
जी ले तू -
जीवन के सपने ..!!
जीवन के सपने ..!!
ठौर ठिकाना लेकर अपना ..
बुनता है क्या ताना -बना ..?
मौन उपासना रख ले मन में ..
आग लक्ष्य की प्रज्जवल उर में ..
शक्ति है जब तेरे संग में ..
वक़्त की अंगड़ाइयों को
देखता क्या ..?
तम से ही तुझको लड़ना है ..
रैनका सपना बीत चुका अब ..
आगे ही आगे बढ़ाना है ...!!
राह की कठिनाइयों से जूझता ..
झूमता ..रमता ..चला जाता है ..
ओ बटोही ..
पथिकवा रे ...कहाँ ...?
अब कहाँ ...?
जीवन की सुनसान डगर में ,
ReplyDeleteजंगल में मंगल करता चल ,
ओ बटोही ! पथिकवा रे !!
बहुत खूब . दूसरे में ध्वनि खूब जमी है .
पर पते की बात तीसरे में ज्यादा है .
जीवन की अन्चीन्ही राहें, बढ़े चलाचल।
ReplyDeleteचल चला चल!
ReplyDeleteबहुत खूब!
आशीष
--
प्रायश्चित
बहुत प्यारी रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
badhai.
ReplyDeletevidesh main rahkar hindi ki behatrin rachna likhtin hain aap.
PLEASE COME FORWARD & JOIN SANSKRITI SANRAKSHAN AUR SANSKAR PALLAWAN ABHIYAN.
cbjainbigstar.blogspot.com
सुगढ़ बात
ReplyDeleteबधाई जारी रहे सफ़र
ताज़ा पोस्ट विरहणी का प्रेम गीत
मौन उपासना रख ले मन में -
ReplyDeleteआग लक्ष्य की प्रज्जवल उर में -
शक्ति है जब तेरे संग में -
वक्त की अंगड़ाइयों को देखता क्या ....?
तम से ही तुझको लड़ना है -
रैन का सपना बीत चुका अब-
बहुत प्रेरणादायक रचना ....टेक्स्ट का रंग पढने में कठिनाई हुई ..
सजीव चित्रण - अति सुंदर
ReplyDelete"धानी सी ओढ़े है चुनरिया
संग तेरे ये कौन गुजरिया
लेकर उसको संग -संग अपने
जी ले तू जीवन के सपने
ठौर -ठिकाना लेकर अपना
बुनता है क्या ताना -बाना"
उत्साहवर्धक रचना. बहुत खूब.
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ...
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ... ...
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteक्या कहूँ...?????
तम से ही तुझको लड़ना है ..
ReplyDeleteरैनका सपना बीत चुका अब ..
आगे ही आगे बढ़ाना है ...!!
राह की कठिनाइयों से जूझता ..
झूमता ..रमता ..चला जाता है ..
ओ बटोही ..
पथिकवा रे ...कहाँ ...?
अब कहाँ ...?
अहा! सुन्दर अनुपम प्रस्तुति.
कहाँ से भर देतीं हैं इतना रंग
आप अपनी प्रस्तुति में.
प्रेरक जगाती हुई शानदार
अभिव्यक्ति के लिए आभार,अनुपमा जी.
बहुत ही सुन्दर भावो को पिरोया है।
ReplyDeleteवाह ...बहुत बढि़या ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा संदेश दिया है।
ReplyDeleteसादर