चहक उठती है
मन की चिड़िया -
महक उठती है
मन की बगिया-!
खिल उठता है
घर का कोना-कोना
जी उठता है
मन का कोना -कोना
बन जाती हूँ बच्ची मैं जब -
घर आते हैं बच्चे -
लौट आता है बचपन मेरा -
संग होते जब बच्चे -!!
है ये बच्चों का बचपन -
या मेरा बचपन -
या मेरा बचपन दोहराता हुआ -
मेरे प्यारे बच्चों का बचपन --
माँ -माँ करता गुंजित कलरव -
अमृत सा दे जाता है -
पीकर इसका प्याला -
मन हर पीड़ा दूर भगाता है --!
खो जाती हूँ रम जाती हूँ -
छोटी सी इस दुनिया में -
घर फिर घर सा लगता मुझको -
घर आते जब बच्चे-!!
बच्चों से तो वैवाहिक जीवन महकता है।
ReplyDeleteबच्चे होते ही हैं ऐसे! उनका साथ किसे अच्छा नहीं लगता;नन्हे बच्चों की निश्छल मुस्कराहट सारी परेशानियों और थकान को पल में दूर कर देती है.
ReplyDeleteदिल को छू गयी आप की ये कविता.
खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahutb theek kaha.A very nice expression.
ReplyDeleteसच कहा है बच्चों के साथ एक बार फिर अपना बचपन जी लेते हैं हम .
ReplyDeleteमन के किसी कोने में बचपन सदैव जीवित रहता है... रहना ही चाहिए!
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
bachchon ke saath ka sunder chitran.
ReplyDeletebachcho me hi to bachpan dhundhte hain ab...bahut badhiya...dil ko chune layak..
ReplyDeleteमेरा प्रयास पसंद आया-
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार .
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में
बच्चों के बिना घर बहुत बहुत सूना-सूना लगता है
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR BHAVON KO SAMETA HAI AAPNE .BADHAI
ReplyDeleteBAHUT ACHCHHI BHAVNAON KO PRAKAT KIYA HAI AAPNE .AABHAR
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR .BADHAI
ReplyDeleteबच्चों के साथ बच्चे बन कर बचपन जी लेते हैं फिर से सुंदर रचना !
ReplyDeleteबधाई !!
बच्चों के बचपन में ही हम अपना बचपन एक बार फिर से जी लेते हैं ! बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteपढकर बचपन के यादों में खो गया,
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,...
सुन्दर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसादर...
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसंगीता जी आपका ह्रदय से आभार ...मेरी पुरानी रचना का नवीनीकरण हो गया ...!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना......
ReplyDeleteखो जाती हूँ रम जाती हूँ -
ReplyDeleteछोटी सी इस दुनिया में -
घर फिर घर सा लगता मुझको -
घर आते जब बच्चे-!!
lag bhag har ma ka haal aapke jesa hi hai
baht sundar racna