तमस प्रमथी ....
अदम्य शक्ति ...
अशेष भक्ति ...
रूप सरूप अरूप दिखाती ...
दुर्गा रूपिणी ...
दुर्गति दूर करती ....
दुआओं की धनी ...
माटी की बनी ...
दूर सुदूर तक फैला है ...
इसकी दुआओं का साम्राज्य ...
न कोई आदि न कोई अंत ..
सन्तति की रक्षा हेतु ...
सदा करती है साधना ...
मांगती है सुरक्षा कवच ...
जहाँ चाहो वहां दृष्टिगोचर है ...
प्रभास ...
प्रात की प्रभा में ...
पाखी की उड़ान में ...
सुरों के स्पंदन में ...
शीतल वायु के आलिंगन में ...
जल के प्रांजल प्रवाह में ....
सूखी दग्ध ..उड़ती हुई धूल के कण में ...
या ...भीगी सी ....
सोंधी माटी की महक में .... ...
सुकून देता ...एक एहसास ...माँ के स्पर्श सा ...!!
आँख खोलो तुम्हारे समक्ष ....
बंद नयन तुम्हारे भीतर ...
सुचारू परिदर्शन ...
एक शक्ति दिव्य सी ...
माँ जैसी ...
कौन है ये ...????
सुदृष्टि ...?
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सुदृष्टि साथ हो .....हर पल खिला खिला ....मुस्काता सा ....वर्ना जीवन और मृत्यु में कोई भेद नहीं .......
दर्शन, अध्यात्म और भावो की अविरल शब्द गंगा बहा दी है अग्रजा. पढ़कर अद्भुत संतुष्टि मिली .
ReplyDeleteआँख बंदकर आपका लिखा दुहराया .दिव्य अनुभूति !
ReplyDeleteकितनी सुन्दर बात छिपी है इस रचना के भीतर. पहले भी कुछ चुका हूँ .... फिर से कहता हूँ आपकी रचनाओं में एक अनूठी ताजगी होती है.इस सुन्दर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteअहा......
ReplyDeleteसुबह सुबह इस रचना को पढना....
feeling blessed!!
सस्नेह
अनु
दुआ चंदन
ReplyDeleteबस रहे पावन
जहाँ भी रहे !
प्रार्थना जैसी, अदम्य उत्साह का सृजन करती रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर प्रस्तुति .इस सुन्दर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई,,
ReplyDeleterecent post : मैनें अपने कल को देखा,
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
ReplyDeleteसुदृष्टि जिसे मिल जाये जीवन का पथ उजाले से भर जाता है...मधुर भाव !
ReplyDeleteवाह ..सुकून सा मिल गया पढ़ कर.
ReplyDeleteसब कुछ स्पष्ट सा दिखता है सुदृष्टि से।
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (11-06-2013) के अनवरत चलती यह यात्रा बारिश के रंगों में .......! चर्चा मंच अंक-1273 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
बहुत आभार शशि जी ...
Deleteकौन है ये ...????
ReplyDeleteसुदृष्टि ...? kismat wale ko hi milti hai ye sudristi ......
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
ReplyDeleteसच कहा ..आँखें तो सबके पास होती है पर देखने की कला भी होनी चाहिए..अन्यथा दृश्य भी भ्रमित होकर रह जाता है..
ReplyDeleteसच कहा ..आँखें तो सबके पास होती है पर देखने की कला भी होनी चाहिए..अन्यथा दृश्य भी भ्रमित होकर रह जाता है..
ReplyDeleteआँख खोलो तुम्हारे समक्ष ....
ReplyDeleteबंद नयन तुम्हारे भीतर ...
सुचारू परिदर्शन ...
एक शक्ति दिव्य सी ...
माँ जैसी ...
कौन है ये ...????
सुदृष्टि ...?
बहुत सुंदर ...
bahut hee sundar prastuti.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
सुदृष्टि मन को उजास से भर देती है .... बहुत सुंदर और एक पवित्र प्रार्थना सी रचना ...
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteआनंद दायक !!
दर्शन, आध्यात्म और भाव को शब्द शक्ति द्वारा अति सुन्दर संप्रेषित किया गया बधाई
ReplyDeleteअद्भुत उर्जा, उत्साह से भरी रचना... मन आनंदित हो गया ... शुभकामनायें
ReplyDeleteएक नयी ऊर्जा और अंतर्दृष्टि को परिभाषित करती दर्शन और आध्यात्म को रेखांकित
ReplyDeleteकर किसी अन्य लोक में ले जाती है अनुपमा तुम्हारी यह रचना ,बहुत सुंदर ....
साभार .....
सुदृष्टि साथ हो .....हर पल खिला खिला ....मुस्काता सा ....वर्ना जीवन और मृत्यु में कोई भेद नहीं .......
ReplyDeleteसच यह सुदृष्टि ही है जो जीवन को सही मायने व दिशा देती है ! जिसके पास यह नहीं उसका जीना जीने जैसा नहीं सिर्फ साँसों का गिनना भर है ! बहुत ही उत्कृष्ट रचना !
आँख खोलो तुम्हारे समक्ष ....
ReplyDeleteबंद नयन तुम्हारे भीतर ...
सुचारू परिदर्शन ...
एक शक्ति दिव्य सी ...
माँ जैसी ...
सबके हिस्से .... इसी विश्वास में जीवन पूर्ण है
प्रार्थना के भाव से कविता सबकी दृष्टि खोलने में भी सक्षम है। बधाई
ReplyDeleteसुकून देता ...एक एहसास ...माँ के स्पर्श सा ...!!
ReplyDeleteआभार आपका ऐसी रचना पढवाने के लिए ...
स्वस्थ रहें!
अनु...प्रकृति को नमन करती ..इस अद्भुत रचना से मन पवित्र हो गया ....वाह !
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना...उत्कृष्टता महसूस करने के लिए सुदृष्टि आवश्यक...तभी बने जीवन मनोरम...सुंदर शब्द, सुंदर भाव...बधाई !!
ReplyDeleteक्या बात है .....!!
ReplyDeleteआभार ...बहुत आभार ..आप सभी का ....
ReplyDeleteवाह.......अति सुन्दर ......
ReplyDeleteखूब!
ReplyDeleteकितना सुन्दर मंगल का विधान !
ReplyDeleteबहुत आभार रश्मि दी ....इतने महत्वपूर्ण बुलेटिन में मेरी रचना को स्थान दिया ....!!हृदय से आभारी हूँ ....!!
ReplyDeleteसुबह सुबह ये रचना पढ़कर दिल खुश हो गया | लाजवाब
ReplyDeletewell said!!!
ReplyDeleteIt has been wonderful reading your posts...,
missed you too...!
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |