बरसो रे मेघा बरसो ....
धूप घनी ,
और
पीड़ा घनीभूत होती है जब ,
जीवन की
तपती दुपहरी में,
छाया भी श्यामल सी
कुम्हलाती हुई ,
मन उदास करती है जब ,
अतृप्त प्यास से
तृषित है ....
धरणि का हृदय जब ....
जल की ही आस
जीवित रखती है
हर सांस
तब,
कोयल की कूक में
हुक सी ......
अंतस से
उठती है एक आवाज़ ...
बिना साज़....
बरसो रे मेघा बरसो ...!!
आपकी लिखी रचना शनिवार 05 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
हृदय से आभार यशोदा ....!!
Deleteबढ़िया सुंदर रचना व लेखन , अनुपमा जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सुन्दर रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteतपती धरा के आँचल में,
ReplyDeleteनव-स्नेह अंकुरित करने को
धरती के भींगे अंतर को
बूंदों की आस होती है... बहुत सुन्दर भाव अनुपमा जी …
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletehttp://kaynatanusha.blogspot.in/
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteववाह ..बहुत सुंदर ..
ReplyDeleteववाह ..बहुत सुंदर ..
ReplyDeleteप्यास जगती है जब भीतर तब आह्वान होता है अमृत सम जल का..सुंदर भाव !
ReplyDeleteसुन्दर .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-07-2014) को "बरसो रे मेघा बरसो" {चर्चामंच - 1665} पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार शास्त्री जी ...!!
Deleteकोयल की कूक में
ReplyDeleteहुक सी ......
अंतस से
उठती है एक आवाज़ ...
बिना साज़....
बरसो रे मेघा बरसो ...!!
आमीन !!!!
बढ़िया सुंदर रचना , अनुपमा जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक शनिवार दिनांक - ५ . ७ . २०१४ को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर होगा , धन्यवाद !
ReplyDeleteहृदय से आभार आशीष जी ...!!
Deleteइतने पावन मन से कोई प्रार्थना की जाये तो अनसुनी कैसे रह सकती है ! आज मानसून की पहली फुहार पड़ी है यहाँ भी ! आपकी दुआ का ही असर दीखता है ! अत्यंत सुंदर एवं प्रभावी रचना ! आभार आपका !
ReplyDeleteसुंदर ।
ReplyDeletevery nice anupma ji
ReplyDeleteअतृप्ति से संतृप्ति की ओर बरसें ये मेघ! सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
जल्दी बरसो रे मेघा ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रयुक्त प्रस्तुति
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी......बरसो रे मेघा
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर भाव |
ReplyDeleteकोयल की कूक में
ReplyDeleteहुक सी ......
अंतस से
उठती है एक आवाज़ ...
बिना साज़....
बरसो रे मेघा बरसो ...!!
बहुत बढ़िया
झिल मिल करते मेघ ... शब्दों से चित्र उतार दिया ...
ReplyDeleteजुलाई के पहले हफ्ते के आस-पास हमारे गाँव में खूब बारिश होती है हर साल. इस साल भी निराशा नहीं हुई. आशा है कविता की पुकार को बरखा रानी ने सुना होगा.
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