प्रकृति में रचा बसा ...!!
हूँ तो भाव भी हैं
किन्तु ,
न रहूँगा तब भी
भावों का अभाव न होगा !!
प्रतिध्वनित होती रहेगी
गूंज मौन की ,
उस हद से परे भी
प्रकृति की नाद में ,
जल की कल कल में
वायु के वेग में
अग्नि की लौ में ,
आकाश के विस्तार में,
धृति के धैर्य में,
रंग में ,बसंत में,
पहुंचेगी मेरी सदा तुम तक
प्रभास तब भी जीवित होगा
प्रेम तब भी जीवित होगा...!!
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
ReplyDeleteप्रेम तो ॐ का चारण है ... रहेगा सृष्टि में हमारे न होने के बाद भी ...
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ...
बहुत ही सुन्दर सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
ReplyDeleteवाह, कम शब्दों में आपने सबकुछ जीवंत कर दिया।
ReplyDeleteप्रेम तो शब्दातीत भी है...बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना अनुपमा जी
ReplyDeleteकौन बाँध सकता है प्रेम को सीमाओं में. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteप्रेम ही परमेश्वर है । शब्द - ब्रह्म है , शाश्वत है ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ।
ढाई आखर प्रेम का ...
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