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28 May, 2021

जाग री

 


जाग री ,

बीती विभावरी 

खिल गए सप्त रंग 


उड़ते बन पखेरू,

मन पखेरू 

विभास के संग ,

शब्द प्रचय से संचित,

मुतियन बुँदियन भीग रहा मन 

प्राची का प्रचेतित रंग ,

बरसे घन 

घनन घनन 

बन जलतरंग 

जीवन उमंग 

छाया अद्भुत आनंद  !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  ''सुकृति ''

16 comments:

  1. गतिमय, गीतमय शब्दलहरी..

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 30 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका !

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  3. भोर के सुंदर रंगों से भीगता मन का आंगन ! सुंदर कृति

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30 -5-21) को "सोचा न था"( (चर्चा अंक 4081) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।

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  5. बहुत ही खूबसूरत सृजन

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  6. सुंदर प्रस्तुति

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  7. बरसे घन

    घनन घनन

    बन जलतरंग

    जीवन उमंग

    छाया अद्भुत आनंद !!--बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  8. कविता में संगीत का एहसास हो रहा । बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

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  9. मुतियन बुँदियन भीग रहा मन

    प्राची का प्रचेतित रंग ,
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर मनमोहक सृजन।

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  10. खूबसूरत मनभावन कृति

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  11. खूबसूरत मनभावन कृति

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  12. वाह सुंदर शब्दांकन।
    सरस ।

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