अजेय भास्कर की किरणों से ,
अनंत समय की वीथिका में ,
सहिष्णु धारा सा बहता जीवन ,
भोर से उदीप्त है स्नेह से प्रदीप्त है ,
रात्रि की नीरवता में गुनता है स्निग्धता
चन्द्र से झरती प्रगल्भ ज्योत्स्ना की
विमल विभा पाता ,विभुता सा लहलहाता !
व्योम से मुझ तक ऐश्वर्य से पुलकित,
स्निग्ध रात की कहानी कहता
मेरा मन ,हाँ …
ऐसे ही तो तुम्हें मुझसे जोड़ता है ,
नयनो से हृदय तक ,
तुम्हारी स्निग्ध शीतलता पाती मैं,
पुलक से आकण्ठ जब भर उठती हूँ ,
तब कहलाती हूँ तुम्हारी पुलकिता !!
" सुकृति "
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 02 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर धन्यवाद।
Deleteमेरा मन ,हाँ …
ReplyDeleteऐसे ही तो तुम्हें मुझसे जोड़ता है ,
नयनो से हृदय तक ,
तुम्हारी स्निग्ध शीतलता पाती मैं,----बहुत अच्छी और गहरी पंक्तियां।
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03-06-2021को चर्चा – 4,085 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
आपका सादर धन्यवाद दिलबाग सिंह विर्क जी !
ReplyDeleteअस्तित्व के उछाह को यथारूप व्यक्त करती पुलकिता
ReplyDeleteमन को जब ऐसे भाव मिलें तो क्यों न हो पुलकिता ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।।
भक्ति और प्रेम से आप्लावित पंक्तियाँ!
ReplyDeleteप्रकृति के सौन्दर्य से रँगों और भावों को उकेर कर लिखा है आपने ...
ReplyDeleteबहुत मधुर काव्य ...
बहुत कोमल भाव, प्रकृति-सी खिली खिली रचना. बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर भावों का अनूठा सृजन ।
ReplyDeleteयही है मन की शक्ति...खुबसूरत शब्द...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteन जाने क्यों आपका सृजन मेरी आँखों से छूट गया।
सादर