कभी कभी
खनकती पायल सी
स्मृतियाँ
बोलती हैं ,
खिलती हैं
मनस पटल खोलती हैं !!
झरने लगते हैं ,
यादों से निकलकर
तुम्हारी महक में भीगे शब्द
मेरी कविता तब
ओढ़ लेती है धानी चुनर
खिल खिल
फूलों में कलियों में
खिलखिलाती है
और विविध रंग उतर आते हैं
सावन हुई धरा पर !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
अति सुंदर, मनोहारी अभिव्यक्ति। अभिनंदन।
ReplyDeleteवाह,आपने सुखद अनुभूति को प्रकृति के रंगों से सराबोर कर दिया,बहुत सुंदर।
ReplyDeleteस्मृतियाँ मन टटोलती भी हैं...
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22 -6-21) को "अपनो से जीतना नहीं , अपनो को जीतना है मुझे!"'(चर्चा अंक- 4109 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आपका बहुत बहुत धन्यवाद कामिनी जी !!
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteखूबसूरत स्मृतियाँ
ReplyDeleteझरने लगते हैं ,
ReplyDeleteयादों से निकलकर
तुम्हारी महक में भीगे शब्द
मेरी कविता तब
ओढ़ लेती है धानी चुनर...एहसास की हल्की महक में भीगे भाव मन मोह गए। बहुत ही सुंदर सृजन।
सादर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर कोमल से भाव समेटे अभिनव सृजन।
ReplyDeleteकविता यूँ निखरती है ।बहुत सुंदर
ReplyDeleteसावन धरा पे झंकार सच में किसी की याद करा जाती है ...
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण ...