महकते हुए
मुहब्बत के निशाँ
सुनो ......
कुछ तुम कहो कुछ मैं सुनूं ...!
मुहब्बत के निशाँ
सुनो ......
कुछ तुम कहो कुछ मैं सुनूं ...!
रेत पर चलते हुए , बहकते हुए
जीवन सा चहकते हुए ,
बनते हुए क़दमों के निशाँ ,
सुनो ...
कुछ तुम चलो कुछ मैं चलूँ...!
जीवन को जीते हुए
हँसते हुए रोते हुए
हैं वक़्त के अनमोल निशाँ
सुनो ...
कुछ तुम लिखो कुछ मैं लिखूं !
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
सुंदर रचना
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध करती रचना - -
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ReplyDeleteजीवन को जीते हुए
हँसते हुए रोते हुए
हैं वक़्त के अनमोल निशाँ
सुनो ...
कुछ तुम लिखो कुछ मैं लिखूं !..सच अगर ऐसा हो, तो इससे खूबसूरत क्या हो सकता है,सुंदर कृति ।
बहुत दिनों बाद लिंक पर आया हूँ...आपकी निरंतरता प्रेरक है...सुन्दर रचना...
ReplyDeleteनिशाँ-ए-गुनगुन,
ReplyDeleteकुछ हम, कुछ तुम।
गहन अभिव्यक्ति..
कोमल भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteहवाओं में उड़ते हुए ,
ReplyDeleteतरन्नुम में तबस्सुम से
महकते हुए
मुहब्बत के निशाँ
सुनो ......
कुछ तुम कहो कुछ मैं सुनूं ...
बहुत सुंदर रचना
वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ।
सादर
बहुत सुंदर रचना है।
ReplyDeleteसुहृद पाठकों का सादर धन्यवाद जिन्होंने यहाँ अपने विचार दिए !
ReplyDeleteकोमल भावपूर्ण रचना
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