बाँध गए जीवन की डोर,
शुभ आशीष बरसता जैसे
नाच रहा है मन का मोर
कण कण पर रिमझिम सी बूँदें
लाइ हैं संदेस अनमोल
प्रकट हुआ आह्लाद ह्रदय का ,
ऐसे आई नवल विभोर
बूंदों की रिमझिम में साजन
सजनी का श्रृंगार वही
प्रकृति ओढ़े हरियाली
है सावन का राग वही
आओ मिलकर अब हम कोई
गीत रचें नया नया
छायी हरियाली है जैसे
प्रीत का रंग नया नया
बूंदों के अर्चन में गाती
राग कोई वसुंधरा
नाद सुनहरी ऐसे गूंजे
रोम रोम है पुलक भरा
भीगी धरती अब हुलसाती
बूंदों में रुनझुन गुण गाती
किसलय के फिर नवल सृजन में
सभी के मन को खूब लुभाती
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति"
भीगी धरती अब हुलसाती
ReplyDeleteबूंदों में रुनझुन गुण गाती
किसलय के फिर नवल सृजन में
सभी के मन को खूब लुभाती
...बरखा रानी और प्रकृति का मनोरम दृश्य,सुंदर रचना,मन को लुभा गई।
रिमझिम बरसते बदरा धरती को नए-नए रूपों से सजा लेते हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रिमझिम बरसती बूंदों से सजी रचना
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१६-०६-२०२१) को 'स्मृति में तुम '(चर्चा अंक-४०९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर धन्यवाद अनीता सैनी जी |
Deleteवर्षा ऋतु में धरा के कण-कण पर बहार आ रही है, सुंदर वर्णन !
ReplyDeleteकण कण पर रिमझिम सी बूँदें
ReplyDeleteलाइ हैं संदेस अनमोल
प्रकट हुआ आह्लाद ह्रदय का ,
ऐसे आई नवल विभोर
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब मनभावन नवगीत।
बूंदों के अर्चन में गाती
ReplyDeleteराग कोई वसुंधरा
नाद सुनहरी ऐसे गूंजे
रोम रोम है पुलक भरा
बहुत ही लाजवाब सृजन
बूंदों के अर्चन में गाती
ReplyDeleteराग कोई वसुंधरा
नाद सुनहरी ऐसे गूंजे
रोम रोम है पुलक भरा
मनमोहक सृजन ।
सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर, मनोहारी रचना है यह; सावन के आगमन की अनुभूति करवाती हुई।
ReplyDeleteयही नवीनता जीवन को गति दिये रहती है, सुन्दर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteये सावन अभी भी गायब है ।
ReplyDeleteसुंदर शब्दावली , सुंदर भाव ।