बारिश .....!!
आच्छादित है बादलों से आकाश
कोइ व्यथा तो नहीं ,
बूँदों में कहता अपनी बात
कोइ कथा तो नहीं ...!
बोलो तो
चलते हुए समय को टोकोगे कैसे ?
बरसती हुई बूँदों को रोकोगे कैसे ?
कहीं भी कभी भी अलग अलग
हिस्सों में जो मिलती है
हँस हँस कर ,
झुक झुक कर
कभी रूठ कर
कभी मनाती
हुई ,
जिंदगी मेरी ही तो है
बिखरे हुए इन यादों के लम्हों को
जोड़ोगे कैसे ?
सरल हो भाषा तो भी
अर्थ गहन होते हैं
अर्थ के भावों को माटी के मोल
तौलोगे कैसे ?
सुबह से शाम होती हुई जिंदगी को
लिख भी डालो लेकिन
जब तलक सूर्योदय न हो ह्रदय का
रात की सियाही को
उजाले से जोड़ोगे कैसे .....?
अनुपमा त्रिपाठी
सुकृति
रात की सियाही को
उजाले से जोड़ोगे कैसे .....?
अनुपमा त्रिपाठी
सुकृति
वाह👌🌻
ReplyDeleteएक सूर्योदय की तलाश जिंदगी भर चलती रहती है,बहुत सुंदर सृजन !
ReplyDeleteसूर्य उदय होते ही तो स्याही गायब हो जाएगी ....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।👌👌👌👌
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर ( 3034...रात की सियाही को उजाले से जोड़ोगे कैसे...?) गुरुवार 20 मई 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय रवींद्र सिंह यादव जी!
Deleteबहुत इ अनुपम सृजन !सच कहा जब तक सूर्योदय न हो ह्रदय का रात की कालिमा कभी उजाले से नहीं जुड़ती।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है ।
बधाई साधुवाद।
बहुत ही अनुपम सृजन !सच कहा जब तक सूर्योदय न हो ह्रदय का रात की कालिमा कभी उजाले से नहीं जुड़ती।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा है ।
बधाई साधुवाद।
बहुत ही प्यारी रचना!!
ReplyDeleteआज की स्थिति को इंगित करती भाव भरी उत्कृष्ट रचना । समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी भ्रमण करें ।सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना अनुपमा जी, सरल हो भाषा तो भी
ReplyDeleteअर्थ गहन होते हैं
अर्थ के भावों को माटी के मोल
तौलोगे कैसे ? सत्य कहा और झिंझोड़ा भी कि हर अर्थ में छुपी होती है एक अनंत भावाव्यक्ति-----वाह
प्रकृति की कही समझने के लिये प्रकृति सी विशालता चाहिये हृदय को।
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