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| पद्मकली | 
लालित्य से भरा ये रूप....
बंद कली में मन ईश स्वरुप... 
खुलतीं हैं  धीरे-धीरे ..
मन की बंद परतें...
जैसे पद्मश्री की पंखुड़ी ...
मन की बंद परतें...
जैसे पद्मश्री की पंखुड़ी ...
बिखेरतीं हैं इस जग में ...
या  बिखेरता है ..
लालिमा अरुणाभ ..
लालिमा अरुणाभ ..
जग  आलोकित  करता  हुआ... 
 मन प्रकाशित करता हुआ...!!
लेतीं हूँ तुम से  प्रेरणा  पद्मकली....
खुलती जाएँ ज्यों -ज्यों ...
मेरे मन की परतें ....
खुलती जाएँ ज्यों -ज्यों ...
मेरे मन की परतें ....
हे  पद्मा  .. पद्मश्री ...
मैं  पद्मप्रिया  ... 
तुम्हें पाकर....तुम्हें निहारकर ...
तुम्हें स्पर्श कर ...
पद्मजया ....पद्मजया ... ही ...बनूँ.......!!
पद्मजया ....पद्मजया ... ही ...बनूँ.......!!
संगीत के विषय में जानना चाहें तो पधारें यहाँ ......सुरों का तसव्वुर ...
                                                                      swaroj sur mandir (स्वरोज  सुर  मंदिर )
Lotuses are symbols of purity and hence symbolize divine birth.
According to the Lalitavistara, 'the spirit of  the best of men is  spotless, like the new lotus in the [muddy] water  which does not adhere  to it', and, according to esoteric Buddhism, the  heart of the beings  is like an unopened lotus: when the virtues of the  Buddha develop  therein the lotus blossoms. Lotuses are symbols of purity and hence symbolize divine birth.


बहुत सुंदर रचना है।
ReplyDeleteएक बात और..कई शब्द मैने पहली बार इस्तेमाल होते हुए देखा है।
अपने होने की शुभ आभ ...!!
ReplyDeleteऔर देती है शुभ-लाभ ...!!
या बिखेरता है ..
लालिमा अरुणाभ ..
जग आलोकित करता हुआ...
मन प्रकाशित करता हुआ...!!
बेहद खूबसूरत कविता।
सादर
लेतीं हूँ तुम से प्रेरणा पद्मकली....
ReplyDeleteखुलती जाएँ ज्यों -ज्यों ...
मेरे मन की परतें ....
मैं पद्मप्रिया ...
तुम्हें पाकर....तुम्हें निहारकर ...
तुम्हें स्पर्श कर ...
पद्मजया ....पद्मजया ... ही ...बनूँ.....उत्कृष्ट भावों के संग उत्कृष्ट चाह
सुन्दर भावपूर्ण और खूबसूरत अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteक्या ग़जब की रचना
ReplyDeleteसभी पंक्तियाँ विचारणीय भाव संजोये हैं..... बहुत बढ़िया
अति सुंदर भाव और अति सुंदर शब्दों से पिरोई आकांक्षा ! बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteखूबसूरत भावों का खूबसूरत प्रदर्शन...
ReplyDeleteलेतीं हूँ तुम से प्रेरणा पद्मकली....
ReplyDeleteखुलती जाएँ ज्यों -ज्यों ...
मेरे मन की परतें ....
आपको बहुत बहुत बधाई --
इस जबरदस्त प्रस्तुति पर ||
bhaut hi khubsurat bhaavo se rachi rachna...
ReplyDeletekya baat hai bahut hi shaandaar shabdon main likhi anupam rachanaa,aap itane katin shabd upyog main laatin hain ki aadhon ka arth to hamain samajh hi nahi aata hai .badhaai aapko itani bemisaal rachanaa ke liye.
ReplyDeleteप्रभावी रचना , बेहतर प्रस्तुति , बधाई
ReplyDeleteकमल का फूल मुझे बहुत प्रभावित करता है ...मेरी दादी का नाम पद्मा और माँ का नाम सरोज था
ReplyDelete...वही बात कई दिनों से मन में घूम रही थी ...अपने आप को कैसे उनसे जोडू ...?बहुत सोचा ...शायद ...कुछ टूटे से भाव हैं या कविता बनी है ...पता नहीं .....
सच तो यह है की मुझे दादी और माँ से ज्यादा दिव्य कुछ लगता ही नहीं ...कमल में भी मुझे वही दिव्यता दिखती है ....
प्रकृति के सौन्दर्य का अग्रप्रतीक।
ReplyDeleteVery touching... very nice meaningful creation...
ReplyDeletechitr ki tarah khoobsurat rachna.
ReplyDeleteसुंदर....अद्भुत शाब्दिक चित्रण किया अनुपमाजी.....
ReplyDeleteअनुपमा त्रिपाठी जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
बेहद सुन्दर शब्दों का ताना बाना.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
कमल की शोभा जब खुद के नाम से भी जुड़ जाए तो ऐसी खूबसूरत कवितायेँ बन जाती हैं ...
ReplyDeleteअतिसुन्दर !
कमाल के भाव, शब्द सौन्दर्य और उत्कृष्ट अभिव्यक्ति . आभार .
ReplyDeleteAbhilasha ythasheeghra purn ho . hamaari yhi shubhkamna hai Anupmaa jee
ReplyDeleteसुंदर आकांक्षा, सुंदर कविता।
ReplyDeleteकल 12/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteअपने होने की शुभ आभ ...!!
ReplyDeleteऔर देती है शुभ-लाभ ...!!
खुबसूरत भाव और अलंकारों से सज्जित कविता....
वाह...
सादर बधाई...
हार्दिक आभार शास्त्रीजी मेरी रचना को चर्चा मंच पर रखने के लिए ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियां
ReplyDeleteमन की परतें खुलने से दिव्य का दर्शन होता है।
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण और खूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबिल्कुल ही नये अंदाज में मन की बात कही गई है.सुंदर रचना.
ReplyDeleteयशवंत जी आभार कविता हलचल पर रखने के लिए.....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत भाव
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगता है आपसे हिंदी सीखनी पढ़ेगी .......
ReplyDeleteओह...अद्वितीय !!!!
ReplyDeleteऔर क्या कहूँ ?
waah...man mantramughdh ho gaya padhkar..kai baar padhne ke baad bhi man nahi bhara..apratim rachna..bahut bahut badhai.
ReplyDeleteBahut khoob likha hai ... sashakt rachna ke liye badhayee....
ReplyDeleteआभार आप सभी का .... मेरी अभिलाषा ....मेरी आकांक्षा ...मेरे मन के भाव समझने और सराहने के लिए ....
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