नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

03 May, 2012

मुस्कुराती छवि तुम्हारी ...!!


तुम्हें अप्रतिहत  निर्निमेष निहार ....
भर- भर लिए  नयन ...
फिर मूँद कर पलक ...
जब-जब भी तुम्हें परखा ,देखा .........!!
दिखी ,मनः पटल पर .....
एक सुस्मित ..अमिट सी.....
बस मुस्काती सी रेखा ..........!!



तुम आये थे याद ...
यकायक जिस पल ...
कुछ पल को उद्वेलित ...
बुझ सा गया था मन .................!!
है दिव्य सी स्वानुभूति ....
अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!

बह गई काजल के संग .....
श्यामल मन की...
घन-घोर ,कारी-अंधियारी ....!!
कर  गयी उजियारी ....
मेरे क्लांत से मन को  ....
मुस्कुराती छवि तुम्हारी ...!!


प्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
तुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
वो  उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
मरुभूमि मेरे मन की ...
किसलय सी कर देती  है ....!!
और ...अन्तः प्रज्ञा  उन्मीलित कर देती  है ....!!


*अप्रतिहत-बिना रोक टोक
*निर्निमेष -अपलक ,या बिना पलक झपके
*प्रतिपन्न-अवगत,जाना हुआ
*संविद-चेतनायुक्त
*श्रेयमयी -मंगलदायक.
*सुस्मित-मधुर मुस्कान
*उन्मीलित-विकसित 

51 comments:

  1. कोमल भावो की कविता... बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  2. वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
    मरुभूमि मेरे मन की ...
    किसलय सी कर देती है ....!!

    बहुत ही सुन्दर रचना | बधाई स्वीकारें |

    ReplyDelete
  3. तुम आये थे याद ...
    यकायक जिस पल ...
    कुछ पल को उद्वेलित ...
    बुझ सा गया था मन .................!!
    है दिव्य सी स्वानुभूति ....
    अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
    भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!बहुत कोमल अहसास..सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  4. बेहद भावपूर्ण.

    ReplyDelete
  5. तुम आये थे याद ...
    यकायक जिस पल ...
    कुछ पल को उद्वेलित ...
    बुझ सा गया था मन .................!!
    है दिव्य सी स्वानुभूति ....
    अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
    भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |

    ReplyDelete
  6. कुछ ऐसी छवि होती है जो जीवन में नए रंग भर देती हैं। उनके मन में समा जाने से मन-प्राण में सतरंगी इन्द्रधनुष समा जाता है।

    ReplyDelete
  7. अप्रतिहत, निर्निमेष, सुस्मित, प्रतिपन्न, संविद श्रेयमयी कुछ ऐसे शब्द हैं, जो मेरे लिए वाकई नए हैं। लेकिन आपने अपनी रचना में इन शब्दों का इस्तेमाल जिस तरह किया है, ये शब्द अपने मायने खुद बयां कर रहे हैं।

    एक बात पूछनी है, क्या सच मे आम बोलचाल में भी आप इतनी कठिन हिंदी बोलेगी, फिर मेरे जैसा आदमी तो शून्य मे ताकता रह जाएगा।
    बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी कवितायेँ मन को आह्लादित करती है .महेंद्र जी के प्रश्न ने मुस्कान खिला दी . अत्यंत सुँदर रचना

      Delete
    2. :-))))))))स्माईली ऐसे ही बनाते हैं न ....?

      Delete
  8. वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
    मरुभूमि मेरे मन की ...
    किसलय सी कर देती है ....!!
    अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!!

    बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन रचना //

    MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

    ReplyDelete
  9. दीदी महेन्द्र भाई साहब की बात पर गौर करें ... और इसे मेरी भी समस्या माने !

    ReplyDelete
    Replies
    1. समस्या का समाधान कर दिया है ...:)

      Delete
  10. bahut sundar rachna sath hi hindi ke sundar shabdon ka pryog ........vaah....

    ReplyDelete
  11. तुम आये थे याद ...
    यकायक जिस पल ...
    कुछ पल को उद्वेलित ...
    बुझ सा गया था मन .................!!
    है दिव्य सी स्वानुभूति ....
    अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
    भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!......वाह अनुपमाजी बहुत ही सुन्दर अहसास ......खूबसूरतीसे पिरोये हुए !!!!!!!!!!!

    ReplyDelete
  12. बह गई काजल के संग .....
    श्यामल मन की...
    घन-घोर ,कारी-अंधियारी ....!!
    कर गयी उजियारी ....
    मेरे क्लांत से मन को ....
    मुस्कुराती छवि तुम्हारी ...!!

    यूं ही मन की श्यामलता बह जाये .... बहुत सुंदर शब्द विन्यास..... कोमल भावों को कहती हुई सुंदर रचना ....

    ReplyDelete
  13. अनदेखी , कुछ जानी- पहचानी आकृति अधमुंदी पलकों में जिसकी मुस्कान बिजली सी कौंधती है ...
    ऐसी ही खूबसूरत कविता !

    ReplyDelete
  14. प्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
    तुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
    जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
    वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
    मरुभूमि मेरे मन की ...
    किसलय सी कर देती है ....!!
    अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!!
    यह आभा इसी तरह विस्तृत रहे और मरुभूमि के किसलय पुष्पित पल्लवित होते रहें यही कामना है ! बहुत सुन्दर रचना है अनुपमा जी ! बधाई स्वीकार करें !

    ReplyDelete
  15. प्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
    तुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
    जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
    वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
    मरुभूमि मेरे मन की ...
    किसलय सी कर देती है ....!!
    अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!!

    आपकी कविता को पढकर मन में कोमल भावों का संचरण अपरिहार्य है. बधाई.

    ReplyDelete
  16. आपकी कविता को पढकर एक साथ दो भाव मन में उठते हैं... पहला भाव मुग्ध होने का - भावों का इतना स्पष्ट प्रस्फुटन और शब्दों का उतना ही प्रगाढ़ संयोजन.. दूसरा भाव स्वयं की अक्षमता का कि चाहकर भी ऎसी कविता नहीं कर पाता!!
    मनमोहक!!

    ReplyDelete
  17. प्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
    तुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
    जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
    वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
    मरुभूमि मेरे मन की ...
    किसलय सी कर देती है ....!!
    अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!अदभुत शब्द भाव

    ReplyDelete
  18. प्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
    तुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
    जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
    वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
    मरुभूमि मेरे मन की ...
    किसलय सी कर देती है ....!!
    अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!!
    क्‍या कहूँ ... आपने तो नि:शब्‍द कर दिया अनुपम भाव संयोजन लिए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete
  19. सुन्दर स्निग्ध और स्मित रचना भाव विभोर कर गई |

    ReplyDelete
  20. बह गई काजल के संग .....
    श्यामल मन की...
    घन-घोर ,कारी-अंधियारी ....!!
    कर गयी उजियारी ....
    मेरे क्लांत से मन को ....
    मुस्कुराती छवि तुम्हारी ...!!
    बहुत सुंदर शब्द और भाव...बधाई !

    ReplyDelete
  21. अहा, पढ़कर मन कविता जैसा हो गया।

    ReplyDelete
  22. मुस्कुराती छवि तुम्हारी..सुध-बुध खो गयी हमारी..बहुत सुन्दर.

    ReplyDelete
  23. खुश और स्वस्थ रहें ..:-))))))

    ReplyDelete
  24. भावनायों की अभिव्यक्ति बेहद संजीदगी से बयान कर गई ..

    ReplyDelete
  25. क्या कहूँ अमृता जी इतनी अलंकृत हिंदी पढ़ कर विभोर हो गई
    कविता अद्भुत है ...बधाई

    ReplyDelete
  26. मधुरिम! अत्यंत कोमल कविता।
    बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  27. very nice poem with soft & beautiful touch...
    आप मेरे ब्लौग पर आईं...आभार आपका...आशा है आगे भी आपके प्रोत्साहन मिलेंगे...thx again.

    ReplyDelete
  28. संयोग की सुन्दर काव्यानुभूति और अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  29. आप जितना सुन्दर भाव प्रधान रचना की रचियता हैं उसके लिए समर्थ ह्रदय और विस्तृत दृष्टि होना आवश्यक है .
    आपके विचारों का प्रभाव आपके लेखन में दृष्टिगोचर होता है .सुन्दर भावों के लिए १० में १०

    ReplyDelete
  30. बहुत ही बढ़िया।


    सादर

    ReplyDelete
  31. कल 07/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार यशवंत .....
      हलचल तो मेरा अपना ही ब्लॉग है .....
      उससे दूर नहीं हो पाती हूँ मैं ....यहाँ पर अपनी कृति देख बड़ी खुशी होती है .....!!

      Delete
  32. सुंदर शब्दों से सजी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  33. अनुपमा जी ! आपकी कविता भावांजलि जैसी है , हर शब्द नपा -तुला , अर्थगर्भित। ये पंक्तियाँ भाव-विभोर कर देती हैं- तुम आये थे याद ...
    यकायक जिस पल ...
    कुछ पल को उद्वेलित ...
    बुझ सा गया था मन .................!!
    है दिव्य सी स्वानुभूति ....
    अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
    भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!

    ReplyDelete
  34. आप सभी का ह्रदय से आभार इस रचना को पसंद करने के लिए ....!!कृपया अपना आशीर्वाद और स्नेह बनाये रखें .........!!

    ReplyDelete
  35. खूबसूरत भावों से सजी सुन्दर रचना |

    ReplyDelete
  36. ओह,अब मैं समझा,क्यों साधना के दौरान बार-बार कहा जाता है कि असली मुस्कान के आने तक,चेहरे पर नकली मुस्कान भी चलेगी!

    ReplyDelete
  37. जाने कैसे ये रचना अनदेखी रह गयी अनुपमा जी...................
    देरी के लिए क्षमा चाहती हूँ....


    बह गई काजल के संग .....
    श्यामल मन की...
    घन-घोर ,कारी-अंधियारी ....!!
    कर गयी उजियारी ....
    मेरे क्लांत से मन को ....
    मुस्कुराती छवि तुम्हारी ...!!
    ..
    बहुत सुंदर रचना है...............
    बहुत प्यारी.
    सस्नेह.

    ReplyDelete
  38. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

    ReplyDelete
  39. भापूर्ण रचना है...
    नए शब्द गजब के है..
    बहुत ही बेहतरीन रचना है...

    ReplyDelete
  40. प्रतिपन्न सत्य को अभिव्यक्त करती शास्वत प्रेम की समृद्ध उन्मीलित भावों से सजी संविद, श्रेयमयी खूबसूरत रचना....
    सादर...

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!