नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

24 September, 2013

जीवन की मौलिकता .....!!


''महुआ ले आई बीन के -
और तिल्ली  धरी है कूट -
आज सजन की आवती -
सो कौन बात की छूट .......!!

 गुड़ होतो तो
 गुलगुला बनाती  ....
तेल   लै आती उधार...
मनो का करों जा बात की ..
मैं आटे से लाचार ........!!!!''



ये  बुन्देलखंडी कहावत, अम्मा (मेरी दादी ) बहुत सारी  चीज़ों में अपनी लाचारगी को छुपाते हुए, बहुत खुश होकर कहा करती थीं |उनकी लाचारगी अब समझ में आती है |

कितना कुछ करना चाहते हैं हम इस जीवन में !!और ज़िन्दगी के इस घेरे में बंध कर क्या - क्या कर पाते हैं ...!!


स्वप्न और यथार्थ के बीच की कड़ी ही जीवन है ...!!
भले ही हम तरक्की कर चाँद पर ही क्यों न घर बना लें ,कुछ मौलिक बातों से दूर हम कभी ....कभी नहीं जा पाते  !!यही शाश्वत सत्य से जुड़ाव ही, हमें जीवन को जीने का कोई संदर्भ ,कोई कारण  भी  देता है !!

  समय के साथसाथ पुरानी कहावते ,मान्यताएं सभी तो दम तोड़ रहीं हैं |अम्मा की दी हुई इस धरोहर को आप सभी तक पहुंचा कर उनको एक भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ |वो क्या गयीं मेरा बुन्देलखंडी भाषा से जैसे नाता ही टूट गया |
मेरा वो --''काय अम्मा ?''पूछना और उनका वो --''कछु नईं बेटा ....''कहना बहुत याद आ रहा है | आज उन्हीं की यादों  के साथ पुनः जी ले  रही हूँ अपना बचपन थोड़ी देर के लिए ....!!

''धीरे गूँद  गुंदना री गूँदना......धीरे गूँद गूँदना री .....''
ये गीत भी अम्मा गाती थीं |
और इसे  लिखते लिखते भी मन मुस्कुरा  रहा है |याद आ रहा है उनके हाथ पर बना वो गूँदना |आजकल के बच्चे जिसे टैटू कहते हैं ,अम्मा उसे गूँदना कहती थीं |सच है न .........कुछ तो है जो कभी नहीं बदलता .....जैसे जीवन की मौलिकता .....!!या हमारा माटी से जुड़ाव ....

''मन क्यूँ नहीं भजता राम लला .....
कृष्ण नाम की माखन मिसरी ....
राम नाम के दही बड़ा ...
मन क्यूँ नहीं भजता राम लला ....!!''

अम्मा काम करती जाती थीं और गाने गुनगुनाती जाती थीं !!
''छोटी-छोटी सुइयां रे ....जाली का मेरा काढ़ना ....!!''
अब समझ में आता है ये सब रियाज़ होता था उनका ...!!
''संजा के मिसराइन के इते बुलौआ  आए |सोई आए गाना चल रओ''(शाम को मिसराइन याने -श्रीमति मिश्रा ,के घर गाने का बुलावा है ,इसलिए गाने का रियाज़ हो रहा है ...!!):))

और फिर शाम को मिसराइन के घर ढोलक  की धमक और गीतों भरी वो शाम .....
कितनी सादगी से ,परम्पराओं से जुड़ा सार्थक सुंदर जीवन ...........


32 comments:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

    ReplyDelete
  2. हृदय से आभार रविकर जी ....!!

    ReplyDelete
  3. यादों को नमन!
    बनी रहे जीवन की मौलिकता, जो खो गयी हो खोज लायें उन्हें हम यादों से यूँ ही!

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - बुधवार - 25/09/2013 को
    अमर शहीद वीरांगना प्रीतिलता वादेदार की ८१ वीं पुण्यतिथि - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः23 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार दर्शन जी ...

      Delete
  5. हाय ..कहाँ पहुंचा दिया . सच, कुछ भी तो नहीं बदलता ..बस वक़्त के साथ नाम बदल जाते हैं.

    ReplyDelete
  6. अम्मा काम करती जाती थीं और गाने गुनगुनाती जाती थीं !!
    ''छोटी-छोटी सुइयां रे ....जाली का मेरा काढ़ना ....!!''
    अब समझ में आता है ये सब रियाज़ होता था उनका

    वाह, पढ़ते पढ़ते कितने चित्र उभर आये आँखों के सामने..आभार!

    ReplyDelete
  7. यादों के रास्‍ते पर मन अनायास ही
    जब दौड़ लगाता है तो
    कितना कुछ समेटे

    बचपन अपनी
    हथेलियां फैला देता है झट से
    मन को छूती पोस्‍ट ....

    ReplyDelete
  8. बहुत अच्छा लगा, आपकी पोस्ट पढते - पढते पुरानी यादों को फिर से जीना..सुन्दर अहसास...
    :-)

    ReplyDelete

  9. स्मृति के पथ पर पुनरागमन अच्छा लगा !
    Latest post हे निराकार!
    latest post कानून और दंड

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर रचना , आपने अपने साथ साथ हम सभी के बचपन के दिन की याद दिला दी |

    ReplyDelete
  11. जीवन दर्शन समेटे सहेजने योग्य स्मृतियाँ

    ReplyDelete
  12. बहुत अच्छा लगा आपका पोस्ट पढ़कर. बचपन की ऐसी यादें जब कभी स्मृति-पटल पर आती है तो ऐसे ही भाव-विभोर कर जाती हैं और मन करता है काश वापस उन्ही दिनों में लौट जाएँ. गूँदना से याद आया की मेरी दादी के हाथों पर भी हुआ करता था. मेरी मातृभाषा मैथिली में इसे 'गोधना' कहते हैं. दादी की यादों को बांटने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और उन्हें नमन.

    ReplyDelete

  13. कितना मीठा राग था जीवन ,

    कितना ये बे -बाक था जीवन।

    अम्मा का ब्योहार था जीवन।

    सुबह सवेरे शाम था जीवन।

    एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

    ''महुआ ले आई बीन के -
    और तिल्ली धरी है कूट -
    आज सजन की आवती -
    सो कौन बात की छूट .......!!

    अरी... गुड़ होतो तो
    गुलगुला बनाती ....
    तेल लै आती उधार...
    मनो का करों जा बात की ..
    मैं आटे से लाचार ........!!!!''

    ये बुन्देलखंडी कहावत, अम्मा (मेरी दादी ) बहुत सारी चीज़ों में अपनी लाचारगी को छुपाते हुए, बहुत खुश होकर कहा करती थीं |उनकी लाचारगी अब समझ में आती है |कितना कुछ करना चाहते हैं हम इस जीवन में !!और ज़िन्दगी के इस घेरे में बंध कर क्या - क्या कर पाते हैं ...!!
    स्वप्न और यथार्थ के बीच की कड़ी ही जीवन है ...!!भले ही हम तरक्की कर चाँद पर ही क्यों न घर बना लें ,कुछ मौलिक बातों से दूर हम कभी ....कभी नहीं जा पाते !!यही शाश्वत सत्य से जुड़ाव ही, हमें जीवन को जीने का कोई संदर्भ ,कोई कारण भी देता है !!
    समय के साथसाथ पुरानी कहावते ,मान्यताएं सभी तो दम तोड़ रहीं हैं |अम्मा की दी हुई इस धरोहर को आप सभी तक पहुंचा कर उनको एक भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ |वो क्या गयीं मेरा बुन्देलखंडी भाषा से जैसे नाता ही टूट गया |
    मेरा वो --''काय अम्मा ?''पूछना और उनका वो --''कछु नईं बेटा ....''कहना बहुत याद आ रहा है | आज उन्हीं की यादों के साथ पुनः जी ले रही हूँ अपना बचपन थोड़ी देर के लिए ....!!

    ''धीरे गूँद गुंदना री गूँदना......धीरे गूँद गूँदना री .....''
    ये गीत भी अम्मा गाती थीं |
    और इसे लिखते लिखते भी मन मुस्कुरा रहा है |याद आ रहा है उनके हाथ पर बना वो गूँदना |आजकल के बच्चे जिसे टैटू कहते हैं ,अम्मा उसे गूँदना कहती थीं |सच है न .........कुछ तो है जो कभी नहीं बदलता .....जैसे जीवन की मौलिकता .....!!या हमारा माटी से जुड़ाव ....

    ''मन क्यूँ नहीं भजता राम लला .....
    कृष्ण नाम की माखन मिसरी ....
    राम नाम के दही बड़ा ...
    मन क्यूँ नहीं भजता रम लला ....!!''

    अम्मा काम करती जाती थीं और गाने गुनगुनाती जाती थीं !!
    ''छोटी-छोटी सुइयां रे ....जाली का मेरा काढ़ना ....!!''
    अब समझ में आता है ये सब रियाज़ होता था उनका ...!!
    ''संजा के मिसराइन के इते बुलौआ आए |सोई आए गाना चल रओ''(शाम को मिसराइन याने -श्रीमति मिश्रा ,के घर गाने का बुलावा है ,इसलिए गाने का रियाज़ हो रहा है ...!!):))

    और फिर शाम को मिसराइन के घर ढोलक की धमक और गीतों भरी वो शाम .....
    कितनी सादगी से ,परम्पराओं से जुड़ा सार्थक सुंदर जीवन ...........

    ReplyDelete
  14. यादों की फुहार में भींगता मन …।

    ReplyDelete
  15. kuch purani baatein phir se tazaa ho gayin..is sundar post ke liye abhaar

    ReplyDelete
  16. आपने बहुत कुछ याद दिला दिया..अच्छा किया हमसे बाँट कर ...बहुत अच्छा लगा अनुपमा जी..वैसे बिहारी कहावत में तो इतनी मधुरता नहीं है पर हर अवसर के लिए अति उपयुक्त है ..

    ReplyDelete
  17. बुंदेलखण्डी सुन कर बड़ा अच्छा लगा। न जाने कितना ज्ञान लोकगीतों में छिपा है।

    ReplyDelete
  18. बहुत अच्‍छा लगा पढ़ कर....ये मीठी यादें हैं....मन को जोड़ती..यादों को संजोती

    ReplyDelete
  19. यादों के रास्‍ते पर मन अनायास ही
    जब दौड़ लगाता है तो
    कितना कुछ समेटे


    वाकई मन को छूती पोस्‍ट ...

    कृपया यहाँ भी पधारें
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

    ReplyDelete
  20. बहुत बहुत आभार सरिता जी ...

    ReplyDelete
  21. शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।

    ReplyDelete
  22. कितना कुछ करना चाहते हैं हम इस जीवन में !!और ज़िन्दगी के इस घेरे में बंध कर क्या - क्या कर पाते हैं ...!!
    स्वप्न और यथार्थ के बीच की कड़ी ही जीवन है ...!!भले ही हम तरक्की कर चाँद पर ही क्यों न घर बना लें ,कुछ मौलिक बातों से दूर हम कभी ....कभी नहीं जा पाते !!यही शाश्वत सत्य से जुड़ाव ही, हमें जीवन को जीने का कोई संदर्भ ,कोई कारण भी देता है !!
    आदरणीया अनुपमा जी , आपके इस सुन्दर लेखन ने मन को बचपन में ले जाकर भाव विभोर कर दिया, आपका धन्यवाद!

    ReplyDelete
  23. आज सजन की आवती -
    सो कौन बात की छूट .......!!

    वाह ...

    ReplyDelete
  24. परम्पराओं की खुशबू बिखेर दी आपने ....और उस बोली के सौंधेपन ने पूरे मन मस्तिष्क को जैसे अपने वश में कर लिया ...बहोत ही प्यारा लेखन

    ReplyDelete
  25. अम्मा की यादों को गूँथ कर पुरानी परम्पराओं से नाता जोड़ दिया है .... यादों के झरोखे से झांकना अच्छा लगा । बहुत सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  26. हृदय से आभार आप सभी का ......

    ReplyDelete
  27. अरे वाह ! कितना सरस एवं रसीला संस्मरण ! मन सुधियों के आसमान में उड़ चला है ! बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!