पुनः शीतल चलने लगी बयार ....
झरने लगे हैं पुष्प हरसिंगार ...........
आ गए फिर दिन गुलाबी ....
प्रकृति करे फूलों से श्रृंगार ………….!!
नवलय भरे किसलय पुटों में........
सुरभिमय रागिनी के ....
प्रभामय नव छंद लिए कोंपलों में.............
अभिज्ञ मधुरता हुई दिक् -शोभित….
सिउली के पुष्पों से पटे हुए वृक्ष .............!!
सुरभि से कृतकृत्य हुई धरा..............
पारिजात संपूर्णता पाते जिस तरह ......
जब खिलकर झिर झिर झिरते हैं ...
धरा का ..प्रसाद स्वरूप आँचल भर देते हैं ..
और अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं ....
पुनः धरा को ही ....इस तरह ....!!!
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झरने लगे हैं पुष्प हरसिंगार ...........
आ गए फिर दिन गुलाबी ....
प्रकृति करे फूलों से श्रृंगार ………….!!
नवलय भरे किसलय पुटों में........
सुरभिमय रागिनी के ....
प्रभामय नव छंद लिए कोंपलों में.............
अभिज्ञ मधुरता हुई दिक् -शोभित….
सिउली के पुष्पों से पटे हुए वृक्ष .............!!
सुरभि से कृतकृत्य हुई धरा..............
पारिजात संपूर्णता पाते जिस तरह ......
जब खिलकर झिर झिर झिरते हैं ...
धरा का ..प्रसाद स्वरूप आँचल भर देते हैं ..
और अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं ....
पुनः धरा को ही ....इस तरह ....!!!
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बहुत बढ़िया,सुंदर सृजन !!!
ReplyDeleteRECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)
दीदी
ReplyDeleteशुभ संध्या
प्यारी कविता पढ़वाई आपने
सादर
यशोदा
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [30.09.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1399 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
हृदय से आभार सरिता जी .....!!
Deleteसच में अपना सब कुछ समर्पित कर देते .... भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteपारिजात ,हरसिंगार ,सिउली ,नाम अनेक
ReplyDeleteइसपर मोहित है बाल वृद्ध ,वनिता हर एक l
नई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
नई पोस्ट साधू या शैतान
अद्भुत वर्णन। प्रकृति की निराली छटा का चित्रांकन आपकी रचनाओं में बेहद सुन्दर होता है. बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग जगत में , इसके लिए खेद है, परन्तु आकर हमेशा अच्छा ही लगता है.
ReplyDeleteसादर,
मधुरेश
प्रकृति नटी के अप्रतिम सौन्दर्य को भरसक समेटती अद्भुत रचना। शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, सुगन्ध बिखेरने का एकमेव कर्तव्य
ReplyDeleteकविता कुछ यूँ गुजरी जैसे प्रातः समीरण. अति सुन्दर.
ReplyDeleteसुगन्ध बिखेरती हुई सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.....
ReplyDeleteहर्सिंदार के यस मनमोहक पुष्प अपने आप में कविता बन जाते हैं ... शब्द बन के मुखर हो जाते हैं ...
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, मंगलवार, दिनांक :-01/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -14 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
हृदय से आभार राजीव जी ...
Deleteहृदय से आभार राजेश जी ....
ReplyDeleteहरसिंगार .. मेरा पसंदीदा फूल .. अधि रात को चटकता और खुसबू मदमस्त .. सुन्दर रचना .. बधाई :)
ReplyDeleteमनोहारी
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत ... हरसिंगार मन को प्रेम से भर देता है
ReplyDeleteवाह
बहुत सुन्दर....
ReplyDelete:-)
pyare se harshringar.......
ReplyDeleteअहा!अति सुन्दर ..अति सुन्दर ..
ReplyDeleteअहा!अति सुन्दर ..अति सुन्दर ..
ReplyDelete
ReplyDeleteपुनः शीतल चलने लगी बयार ....
झरने लगे हैं पुष्प हरसिंगार ...........
आ गए फिर दिन गुलाबी ....
प्रकृति करे फूलों से श्रृंगार ………….!!
यौवन पे आ गया निखार।
फागुन के दिन चार।
सुन्दर प्रस्तुति।
आभार बताने का सुमन जी ...!!
ReplyDeleteसुगन्ध बिखेरती हुई सुन्दर रचना
ReplyDeleteMy Recenp Post ....क्योंकि हम भी डरते है :)
रचना पर अपने विचार दिये ..........आप सभी का हृदय से आभार .....!!
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