रात ढली और ....
सुबह कुछ इस तरह होने लगी ....!!
गुलमोहर से रंग झरे ...……
सूरज ऐसा रोशन हुआ ...
कि मोम भी पिघलने लगी ...
आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल ...
पिया का पतियाँ लाई .....
कूक कूक
राग वृन्दावनी सारंग सुनाने लगी ...
भरी दोपहर याद पिया की ..
बिजनैया जो डुराने लगी ...
कूजती रही कोयल ...
हूक जिया की,
पल पल जाने लगी ...
निरभ्र आसमान में ,
चहकते विहग ....
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!
*********************************
वृन्दावनी सारंग दिन में गाए जाने वाला राग है …!!
बिजनैया -पंखा
डुराए -झुलाना .
सुबह कुछ इस तरह होने लगी ....!!
गुलमोहर से रंग झरे ...……
सूरज ऐसा रोशन हुआ ...
कि मोम भी पिघलने लगी ...
आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल ...
कूक कूक
राग वृन्दावनी सारंग सुनाने लगी ...
भरी दोपहर याद पिया की ..
बिजनैया जो डुराने लगी ...
कूजती रही कोयल ...
हूक जिया की,
पल पल जाने लगी ...
निरभ्र आसमान में ,
चहकते विहग ....
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!
*********************************
वृन्दावनी सारंग दिन में गाए जाने वाला राग है …!!
बिजनैया -पंखा
डुराए -झुलाना .
मुस्कुराती रहे ज़िन्दगी यूँ ही....
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
सस्नेह
अनु
ये अनुपम लेखनी अपूर्व छटा बिखराने लगी..
ReplyDeleteजैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी...
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी....sundar post...
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
ReplyDeleteआम्र की मंजरी पर बैठी कोयल ...
ReplyDeleteपिया का पतियाँ लाई .....
कूक कूक
राग वृन्दावनी सारंग सुनाने लगी ..
वाह.. सुरीली सी पंक्तियाँ..
वह बहुत खूब
ReplyDeleteऔर थका हारा मैंने भी जब पढ़ा शाम में तो मैं भी मुस्कुराने लगा क्योंकि कविता है है ऐसी. अति सुन्दर.
ReplyDeleteअनुपम!
ReplyDeleteवृन्दावनी सारंग ke sumadhur svar!! :)
ReplyDeletekoyal si kukti panktiyan...
ReplyDeletesuperb Anupma jee...
राग और बंदिश , रचना और उसका संसार दोनों समस्वरता लिए हैं।
ReplyDeleteओहो बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteवाह ... रागों की ताजगी लिए शब्द ...
ReplyDeleteदिन को ओर सुंदर बनाती धूप के रंग लिए ...
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteशुभकामनाएं!
पिया का पतियाँ लाई .....
ReplyDeleteकूक कूक
राग वृन्दावनी सारंग सुनाने लगी ..
वाह.. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
वाह
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteसुहानी सुबह का सुंदर चित्रण !
ReplyDeleteसुन्दर अति सुन्दर |
ReplyDeleteज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!
ReplyDeleteकविता आपकी खुद बा खुद गुनगुनाने लगी।
बेहतरीन माधुर्य भाव की रचना।
शुक्रिया आपकी टिपण्णी का।