शीत का पुनरावर्तन ,
जागृति प्रदायिनी ,
उमगी सुनहली प्रात,.....!!
अलसाई सी ,गुनगुनी धूप ,
गुनगुनाती हुई स्वर लहरियाँ,
शब्दों की धारा सी ...
शांत बहती नदी ...
और ...
हृदय में अंबर का विस्तार ,
मेरे मन के दोनों किनारों को जोड़ता
एक सशक्त पुल .....
नयनाभिराम सौन्दर्य देते पल...!!
और कुछ शब्दों की माला पिरोता....
गाता मेरा मन ...
आओ री आओ री आली
गूँध गूँध लाओ री ,
फूलन के हरवा ....!!''
जागृति प्रदायिनी ,
उमगी सुनहली प्रात,.....!!
अलसाई सी ,गुनगुनी धूप ,
गुनगुनाती हुई स्वर लहरियाँ,
शब्दों की धारा सी ...
शांत बहती नदी ...
और ...
हृदय में अंबर का विस्तार ,
मेरे मन के दोनों किनारों को जोड़ता
एक सशक्त पुल .....
नयनाभिराम सौन्दर्य देते पल...!!
और कुछ शब्दों की माला पिरोता....
गाता मेरा मन ...
आओ री आओ री आली
गूँध गूँध लाओ री ,
फूलन के हरवा ....!!''
मेरी कृति चर्चा मंच पर लेने हेतु आपका हृदय से आभार राजेंद्र कुमार जी !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर कृति.
ReplyDeleteवाह... शरद के आगमन की सुंदर सुरलहरी
ReplyDeleteसुरलहरी .... नाम के अनुरूप अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअनुपम भाव
मन के तारों को झंकृत करते शब्द ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteगूंध-गूंध लिया है इस फूलन के हरवा को..
ReplyDeleteफूलन के हरवा... अहा! मन मोह लिया इस शब्द ने. बहुत सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteआपकी कविता पढ कर ये संसार और भी खूबसूरत नज़र आने लगता है।
ReplyDeleteसुनहली प्रभात अलसाई दोपहरी, शब्दों सी शांत बहती नदी और मन में अंबर का विस्तार वाह, पर आज कोहरे के परदे के पीछे है यह सब।