शीतल पवन के झोंखे से ,
मेरे मन में भी उपजी
उर्वरता की,
प्रस्फुटित हरियाली में
खिलते हुए शब्दों की उदात्त भाषा,
हे हिन्दी
तुम ही मेरी अभिव्यक्ति की अभिलाषा ..!!
मेरी संवेदनाओं में
अमर्त्य सी पैठती
सगर्व सुवर्ण संवर्धन सी
जागती चेतना का प्रभास
मेरा चिरंतन प्रयास ..
तुम ही मेरी आस
वन्या की हरित हरियाली सा ,
जीवन तरु की हरी भरी छाया सा ,
नाद से अंतर्नाद अर्चन सा ,
निर्मल जल में अपने ही प्रतिबिम्ब सा ,
कण कण में बसता अनुराग..
तुम से ही मेरी राग !!
अनुपमा त्रिपाठी
" सुकृति"
बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहिंदी दिवस की बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर
हिंदी भाषा का सरस वंदन
ReplyDeleteहमारी हिन्दी को समर्पित अनुपम कृति । नैनाभिराम !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 16.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
ReplyDeleteआप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
मेरी रचना को चर्चा- मंच पर साझा करने हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद दिलबाग सिंह जी !!
Deleteहिंदी दिवस की शुभकामनाएं
ReplyDeleteमन को कर शब्दों में अर्पण..हिन्दी ने सस्नेह बाँध लिया है।
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ।
बहुत सुंदर हिन्दी पर मान , हिन्दी का सम्मान।
ReplyDeleteसुंदर शब्दों का अभिनव समर्पण।
वाह!
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteहिंदी के प्रति अनुपम अनुराग। बेहतरीन।
ReplyDeleteहिंदी को समर्पित सुंदर, अनमोल, भाव प्रवण रचना ।
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