तुम पुकारो
गाओ प्रातः का राग
प्रीत महके
भोर चहके
चिड़ियों की रागिनी
मन बहके
प्रीत श्रृंगार
नवल अलंकार
गीत लहके
भोर सुहानी
कहती है कहानी
शब्द संवारे
पँख फैलाये
डोल रहा है मन
गुनगुनाये
रैन बसेरा
क्यों मन लगाए रे
दुनिया मेला
लिखते चलो
जीवन अभिलाषा
मन की भाषा
आई बहार
सकल बन फूले
रंग बिखरे
पुष्प धवल
सुगन्धित बयार
खिले संसार
हुआ सवेरा
जागी फिर आशाएं
खिली दिशाएं
घूँघट खोला
नवल प्रभात ने
बिखेरे रंग
पापीहा बोले
भेद जिया के खोले
मनवा डोले
दिन बीतते
फिर भी न रीतते
स्वप्न सलोने
आई बहार
सकल बन फूले
छाई बहार
चंचल मन
जा रे पिया के देस
उड़ता जा रे
प्रकृति नटी
रंग ज्यों बिखराये
प्रीत सजाये
तुमसे बनी
आकृति प्रीत की
झूमे प्रकृति
अनुपमा त्रिपाठी
'सुकृति '
हाइकू संग
ReplyDeleteभोर की रंगशाला
बिखेरे रंग
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हर हाइकु
प्रीत लिए संग में
मन को भाए ।
बेहतरीन हाइकु ।
अहा दी कितने सुंदर हाइकू ,धन्यवाद !!
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 08 जुलाई 2022 को 'आँगन में रखी कुर्सियाँ अब धूप में तपती हैं' (चर्चा अंक 4484) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
नमस्ते रविंद्र सिंह यादव जी ,
Deleteमेरी प्रविष्टि को चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु सादर धन्यवाद आपका |
वाह
ReplyDeleteवाह ! जीवन के अनगिन रंग हाईकू के संग, सुंदर सृजन !
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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