''ज़िंदगी एक अर्थहीन यात्रा नहीं है ,बल्कि वो अपनी अस्मिता और अस्तित्व को निरंतर महसूस करते रहने का संकल्प है !एक अपराजेय जिजीविषा है !!''
हृदय के भीतर के
सूक्ष्म दिव्य प्रकाश की परिणति है |
कर्म ही प्रकृति है ,
चलते रहना ही नियति है .....!!
चरैवेति .....चरैवेति .....!!
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति "
आप्त वाणी सम ।
बुरा ना मानियेगा चरैवेति से मुझे महसूस हो रहा है मुझे चरना है| आप अपनी जगह पर सही है| मैं अपनी सोच के लिए कुछ नहीं ना कर सकता :)
Good
जगत, संसार, आत्मा - सब शब्दों की धातु गति से सम्बन्धित है। सुन्दर सत्य।
सत्य .... चलना ही नियति है ।
बहुत सुन्दर
ठीक कहा अनुपमा जी आपने।
सादर नमस्कार,आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (24-09-2021) को "तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?" (चर्चा अंक- 4197) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद सहित।"मीना भारद्वाज"
सादर सस्नेह धन्यवाद मीना जी !!
सही कहा आपने आदरणीय दी चलते रहना ही नियति है।बहुत ही सुंदर सृजन।सादर
कर्म ही प्रकृति है ,चलते रहना ही नियति है .....!!बस यही सत्य है....सुंदर सृजन,सादर नमन आपको
कम शब्दों में सारगर्भित दर्शन।स्थापित शब्दों पर सुंदर विवेचना।
कर्म ही प्रकृति है ,चलते रहना ही नियति है .....बहुत सटीक एवं सारगर्भित।वाह!!!
सत्य है कर्म ही नियति है।सकारात्मक सृजन प्रिय अनुपमा जीसस्नेह।
नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!
आप्त वाणी सम ।
ReplyDeleteबुरा ना मानियेगा चरैवेति से मुझे महसूस हो रहा है मुझे चरना है| आप अपनी जगह पर सही है| मैं अपनी सोच के लिए कुछ नहीं ना कर सकता :)
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteजगत, संसार, आत्मा - सब शब्दों की धातु गति से सम्बन्धित है। सुन्दर सत्य।
ReplyDeleteसत्य .... चलना ही नियति है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteठीक कहा अनुपमा जी आपने।
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (24-09-2021) को "तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?" (चर्चा अंक- 4197) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
सादर सस्नेह धन्यवाद मीना जी !!
Deleteसही कहा आपने आदरणीय दी चलते रहना ही नियति है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन।
सादर
कर्म ही प्रकृति है ,
ReplyDeleteचलते रहना ही नियति है .....!!
बस यही सत्य है....सुंदर सृजन,सादर नमन आपको
कम शब्दों में सारगर्भित दर्शन।
ReplyDeleteस्थापित शब्दों पर सुंदर विवेचना।
कर्म ही प्रकृति है ,
ReplyDeleteचलते रहना ही नियति है .....
बहुत सटीक एवं सारगर्भित।
वाह!!!
सत्य है कर्म ही नियति है।
ReplyDeleteसकारात्मक सृजन प्रिय अनुपमा जी
सस्नेह।