नदिया में बहते पानी सा मन
विचारों सा प्रवाहित जीवन
उसपर बहती जीवन की नाव
रे मन
सबका अपना अपना ठौर
सबकी अपनी अपनी ठाँव !!
कोई धारा कोई किनारा
कोई ले आता मजधार
फिर भी कोई पेड़ों सी देता
ठंडी ठंडी छाँव
सबका अपना अपना ठौर
सबकी अपनी अपनी ठाँव !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन ।
ReplyDeleteकोमल भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०६-०५-२०२२ ) को
'बहते पानी सा मन !'(चर्चा अंक-४४२१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
नमस्ते अनीता जी ,
Deleteसादर धन्यवाद आपने मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान दिया |
गहन भाव लिए सुंदर रचना।
ReplyDeleteसुंदर भाव, आशा का संचार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteभाव प्रवाह और जीवन।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteमेरी कविता को पसंद करने हेतु सभी सुधि पाठकों का ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद !!
ReplyDeleteपर सबका एक ही है गाँव... सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसबका भले ही ठौर ठिकाना अपना हो पर मन तो नदिया से बहता जाता है न ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन ।