जब
कभी किसी
उदास शाम की आगोश में
लिपटी मेरी तन्हाई ,
न कहती है ,
न कहने देती है ,
अपनी उदासी का सबब ,
गहराती सुरमई साँझ
कजरारे नैनो के मानिंद
तब
पलकें उठाती है
और सोये हुए खाब मेरे
फिर जी उठते हैं ... !!
हवा का इक झोंखा
सहलाकर माथे को
दूर कर देता है
माथे की शिकन
नायाब सा वो खाब
फिर इक बार
जगमगाता है ,
मन फिर मुस्काता है !!
मन फिर मुस्काता है !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
हर शाम एक नयी सुबह का संदेश जो लेकर आती है, सुंदर आशा और विश्वास के स्वरों से बुनी रचना !
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-०५-२०२२ ) को
'रिश्ते कपड़े नहीं '(चर्चा अंक-४४३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-०५-२०२२ ) को
'रिश्ते कपड़े नहीं '(चर्चा अंक-४४३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक धन्यवाद अनीता जी मेरी कृति को चर्चा अंक -4430 में लेने हेतु|
Deleteआखों के स्वप्न ही जीवन का सबसे खूबसूरत संबल हैं | मनभावन रचना अनुपमा जी | हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर।🌻
ReplyDelete'और सोये हुए ख़्वाब मेरे
ReplyDeleteफिर जी उठते हैं ... ' -वाह, क्या खूब कहा है!
बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
ReplyDeleteये सुरमई सांझ बदल देती है मौसम और दूर करती है हर उदासी ...
ReplyDeleteबस यूं ही मन मुस्काता रहे और आंखों में ख्वाब सजते रहें । जन्मदिन की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद di❤❤🙂
Deleteहाँ! सच में, कुछ ऐसा ही होता है। हार्दिक शुभकामनाएँ।
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