मुझे अनहद पे यकीं आज भी बेइंतहा होता है
याद आता है स्पर्श माँ का जब भी
दिल के कोने में फिर इक ख़ाब सा महकता है
रुक रुक के चलते हुए कदमों की तस्लीम थकन
इस भटकन के सिवा ज़िन्दगी में रक्खा भी क्या है ?
मुझको चाहो या भूलो पर ऐतबार तो करो
अपनी दानिश का वजूद हर सिम्त यूँ कहता क्या है !!
तस्लीम -स्वीकार करना
दानिश -शिक्षा
सिम्त -ओर ,तरफ।
अनुपमा त्रिपाठी
सुकृति
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 22 मई 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 22 मई 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका यशोदा जी !!
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-5-22) को "यह जिंदगी का तिलिस्म है"(चर्चा अंक-4438) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत धन्यवाद आपका कामिनी जी !!
Deleteमुझको चाहो या भूलो पर ऐतबार तो करो
ReplyDelete–बहुत खूब
बेइंतहा यकीन ही तो अनहद है। अनूठा भाव।
ReplyDeleteकोमल भावों से पूर्ण सुंदर सृजन
ReplyDeleteयाद आता है स्पर्श माँ का जब भी
ReplyDeleteदिल के कोने में फिर इक ख़ाब सा महकता है
.. माँ जिन्दा धड़कनों का नाम है
बहुत सुन्दर भाव
वाह !!! बहुत सुंदर । आज कल उर्दू पर ज़ोर आज़माइश है ।
ReplyDeleteमाँ का स्पर्श से ख्वाब का महकना .... लाजवाब 👌👌👌👌
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteबड़ी सुन्दरता से बांधा है भावों को कविता में!
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