कुछ कहता है ...
मेरा मन ...बहता है ..
जीवन की धारा के संग ...
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ...धीरे -धीरे ...!!
जैसे लौट आया है ...
फिर आया है ...
बचपन का वो रंग
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ..धीरे-धीरे ...
देख रही हूँ ...सुन रही हूँ ....ह्रदय-गीत
मद्धम-मद्धम ..धीरे-धीरे ..धीरे-धीरे....!!
कल-कल की ध्वनि से जुड़ता ... ..
चप्पू की आवाज़ से उपजता ....
वो जीवन-संगीत .....
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ...धीरे -धीरे ...!!
हाँ मांझी साथ है मेरे ...
ले जायेगा मुझे उस पार .....
खेता हुआ मेरी पतवार...!!
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ...धीरे -धीरे ...!!
एकाग्रचित्त ...
ReplyDeleteनदिया किनारे बैठी....
देख रही हूँ ...सुन रही हूँ ....ह्रदय-गीत
मद्धम-मद्धम ..धीरे-धीरे ..धीरे-धीरे....!!
Bemisal.... Bahut pyari panktiyan
Humien to ise aap ki awaaz mein sun'na hai.. Gaakar sunaaiye..dekhiye kitna sangeet hai ismein? hai a ANu Di ?
ReplyDeleteसे लौट आया है ...
ReplyDeleteफिर आया है ...
बचपन का वो रंग
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ..धीरे-धीरे ...
एकाग्रचित्त ...
नदिया किनारे बैठी....
देख रही हूँ ...सुन रही हूँ ....ह्रदय-गीत
मद्धम-मद्धम ..धीरे-धीरे ..धीरे-धीरे....!!
बहुत ही खूबसूरत गीत.....
इस गीत को पढ़कर एक आध्यात्मिक अनुभूति हुई। बड़ी ही शांत हुआ मन। लगा कि प्रकृति के बीच ध्यानस्थ हो गए।
ReplyDeleteआप इन गीतों का पोड़कास्ट भी लगाया कीजिए।
प्रकृति की गति मध्यम ही रहती है, हमारी हड़बड़ी उस परिप्रेक्ष्य में बड़ी फूहड़ लगती है।
ReplyDeleteKhubasurat geet padhkar Anand aa gaya.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर
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जैसे लौट आया है ...
ReplyDeleteफिर आया है ...
बचपन का वो रंग
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ..धीरे-धीरे ...
बहुत सुन्दर
आहा...बेहतरीन...क्या खूब रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी पोस्ट........एक हल्का सा राग छेड़ती......वाह|
ReplyDeleteहाँ मांझी साथ है मेरे ...
ReplyDeleteले जायेगा मुझे उस पार .....
खेता हुआ मेरी पतवार...!!
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ...धीरे -धीरे ...!!
जब मांझी हो साथ तब जीवन में संगीत उतर ही आता है मद्धम मद्धम धीरे धीरे ! बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता !
सुन्दर ... पोराकृति और पोरेम का अनूठा मिश्रण अहि इस रचना में ...
ReplyDeleteवाह ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteएकाग्रचित्त ...
ReplyDeleteनदिया किनारे बैठी....
देख रही हूँ ...सुन रही हूँ ....ह्रदय-गीत
मद्धम-मद्धम ..धीरे-धीरे ..धीरे-धीरे....!!
ह्रदय मे संगीत सा बज उठा हो जैसे……………बस ऐसे उतर गयी आपकी आज ये रचना
बढ़िया गीत रचा है आपने!
ReplyDeleteइसकी ध्वन्यात्मकता देखते ही बनती है!
जीवन धारा संग बहती
ReplyDeleteकुछ शब्दों में.. कितना कुछ कहती
कविता खिल जाती है
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ..धीरे-धीरे ...!!
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!
बेहद खुबसूरत....
ReplyDeleteप्रकृति की मद्धम और निरंतर गति के साथ- साथ मांझी की संगत से मिलती सुरक्षा का एहसास मन में बसाए हुये आनंदित होने का सचित्र वर्णन करती हुई एक सुन्दर रचना है.
ReplyDeleteहाँ मांझी साथ है मेरे ...
ReplyDeleteले जायेगा मुझे उस पार .....
खेता हुआ मेरी पतवार...!!
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ...धीरे -धीरे ...!!
बहुत ही सुंदर नदी किनारे बैठे संगीत का आनंद देती हुई सार्थक रचना /दिल को मधुर संगीत के समान तरंगित कर गई /बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /जरुर पधारिये /
kash sabhi aise komal ehsaso se guzer paaye...is jingi ki daud me.
ReplyDeleteएकाग्रचित्त ...
ReplyDeleteनदिया किनारे बैठी....
देख रही हूँ ...सुन रही हूँ ....ह्रदय-गीत
मद्धम-मद्धम ..धीरे-धीरे ..धीरे-धीरे....!!बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर है आपके प्रस्तुति,
ReplyDeleteआभार, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
If put in a rhythm this could be a very beautiful song. Very well written and laid down.
ReplyDeleteपढ़ कर मन मेरा हुआ झंकृत
ReplyDeleteमद्धम-मद्धम ..धीरे-धीरे ..धीरे-धीरे...
सुँदर कविता , मन प्रफुल्लित हुआ
सुंदर अभिव्यक्ति। प्रकृति का स्वभाव ही है सहज गतिशीलता व संतुलन पूर्ण समायोजन।
ReplyDeleteहमेशा पढता हूं आपको, अच्छा लगता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,क्या कहने।
बहुत सुन्दर रचना... लफ्ज़ बलफ्ज़ चित्र को परिभाषित सी करती हुयी...
ReplyDeleteसादर बधाई...
वाह...वाह...और वाह...
ReplyDeleteऔर तो कुछ है ही नहीं इससे आगे कहने को...
बहुत ही खूबसूरत गीत|
ReplyDeleteबहुत खूब ...आकर्षक गीत के लिए आभार !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें आपको !
मध्यम मध्यम ..धीरे धीरे .. बहुत सुन्दर गीत ...मन को शांति पहुंचाता हुआ ...
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeletewaah! bhaut hi sundar...
ReplyDeleteकुछ मेरे भी ख्यालों में आता है
ReplyDeleteमद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
इक टिप्पणी-सी करवाता है
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
बहुत प्यारा-सा लिखा आपने
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
पानी किनारों पर चलता है
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
भीतर कुछ गुन-गुन करता है
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
मुझको मुझसे मिलवाता है
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
चलती नदिया-बहता पानी
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
संग बहती है इसके रवानी
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
समय भी चलता जाता है
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
ना जाने क्या-क्या करवाता है
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
किसी दिन हम भी चले जायेंगे
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
और बीता हुआ कल कहलायेंगे
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
अपने आज को सुन्दर कर लें
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
हम तो सबसे प्यार कर लें
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
धरती फिर से स्वर्ग बन जायेगी
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
अपने बच्चों पर इठलाएगी
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
सबको सबमें जी लेने दो
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
सबमें तुम सब ही बस जाओ
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
संग-संग सबके खिलखिलाओ
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे
और तब चुपचाप चले जाओ
मद्धम-मद्धम....धीरे-धीरे !!
kitni sundar rachna... bahati hui hawa si...
ReplyDeletemaddham-maddham dheere-dheere...
कुछ कहता है ...
ReplyDeleteमेरा मन ...बहता है ..
जीवन की धारा के संग ...
मद्धम-मद्धम ..धीरे- धीरे ...धीरे -धीरे ...!!
आपके मन ने तो बहुत कुछ कह दिया है,अनुपमा जी.
सोच में डूबी नई पुरानी हलचल से यहाँ आये तो
आपकी 'मद्धम मद्धम ..धीरे- धीरे...धीरे -धीरे ...!!'
का ऐसा रंग चढा है कि उतर ही नहीं रहा है.
वाह! क्या 'अनुपम' सोच में डुबाया है आपने.
बहुत सुन्दर गीत...!
ReplyDeleteआभार आप सभी का ....इस भाव की लय में शामिल होने के लिए .....!!
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