नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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27 July, 2013

चतुर चितेरा .....मनभावन .......!!

धरणी का संताप देख
वरुण हुए  करुण
सघन  घन में भरा आह्लाद
करुणा सारी बरसा जाने को
वसुंधरा की हर पीड़ा हर लाने  को
उमड़ घुमड़ ...गरज गरज
बूंद बूंद
बरसने को हो रहे आकुल


चतुर चितेरा मनभावन
 बरस  रहा है सावन
पीत  दूब प्रीत पा
हरित हो रही ....!!!!!

दूब का रंग हरा हुआ
पल्लव से  वृक्ष भरा हुआ
इंद्रधनुष के रंगों मे
हँस के निखर रही है धरा
चम्पा  की सुरभी बिखेर
चहक रही है धरा

नदिया की धारा में सिमटी समाई
मांझी के गीत सी
झनकती बूंद
चल पड़ी फिर
नाचती झूमती गाती ...समुंदर तक 

34 comments:

  1. मन की प्यास बुझाने, नभ बरसाता जल जीवन।

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  2. आहा ..तन मन भीग उठा ।

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  3. 'धरणि का संताप देख .....
    वरुण हुए करुण...'
    कितनी सुन्दरता से सजाये हैं शब्द!
    वाह!

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  4. तन मन भीगाता मनभावन चितरण...आभार अनुपमा जी..

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  5. बहुत ही खूबसूरत.

    रामराम.

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  6. खुबसूरत अभिवयक्ति......

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  7. मनभावन चित्रण सावन का ....

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  8. बहुत ही सुन्दर मनभावन रचना..
    :-)

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  9. बहुत खूबसूरत अभिवयक्ति.

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  10. बूंद का अस्तित्व ही किसी में विलीन हो जाना है ....बहुत खूबसूरत रचना

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  11. सुन्दर प्रकृति का रंग और सौंदर्य सहज रूप इस रचना में आ गया है। (अध्यात्म ,धरणी ).ओम शान्ति।

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  12. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी ....इस रचना को चर्चा मंच पर लेने हेतु ....!!

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  13. रिमझिम फुहार सी प्यारी कविता..सुन्दर..

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  14. प्रकृति की कुशल चितेरी हो आप , क्या मनभावन दृश्य चित्र उकेरा है आपने शब्दों के माध्यम से . अद्भुत .

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  15. सुंदर रचना.....

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  16. सुंदर वर्षा वर्णन प्रेम प्यासी धरा पर प्रेम का वर्षण।

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  17. प्रकृति का अनुपम चित्रण सुन्दर चित्रों का संयोजन

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  18. अति सुन्दर प्राकृतिक रचना

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  19. सावन का इतना सुंदर एवँ जीवंत काव्य चित्र है कि उससे रिमझिम की मधुर एवँ सुरीली ध्वनि भी प्रतिध्वनित हो रही है और इन्द्रधनुष का सतरंगा प्रकाश भी क्षितिज पर विस्तीर्ण दिखाई दे रहा है ! आपकी लेखनी को नमन अनुपमा जी !

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  20. वरुण करुण हो बरस गया .... और आपने सावन का खूबसूरती से शब्दों में चित्र उतार दिया ... बहुत सुंदर रचना ...

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  21. वाह!! क्या बात है...

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  22. नदिया की धारा में सिमटी समाई ....
    मांझी के गीत सी ...आपकी पंक्तियाँ ....


    आपकी आवाज़ में हरदीप जी के माहिया सुने ...
    न जाने कितनी बार सुनती गई ...
    बहुत ही प्यारी आवाज़ में गए हैं ...

    काश कोई हमारे लिए भी गता ....:))

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    1. वाह हरकीरत जी ....ईश्वर ने चाहा ,ज़रूर गाऊँगी ....हृदय से आभार इतनी सहृदय टिप्पणी का .....!!

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  23. वाह खूब सूरत झांझर पहना दी है बूँद बूँद को।प्रकृति का मानवीकरण हुआ है रचना में। ॐ शान्ति।

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  24. शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का। इस शानदार पोस्ट पर बधाई।

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  25. नदिया की धारा में सिमटी समाई ....
    मांझी के गीत सी ....
    झनकती बूंद ....
    चल पड़ी फिर ...
    नाचती झूमती गाती ...समुंदर तक ....
    वाह ... बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति

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  26. शुक्रिया कीर्ति अनुपमा। ॐ शान्ति।

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  27. रिमझिम और नदिया की कलकल का आनंद एक साथ आ गया

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  28. मन को शीतल बूंदों से सिंचित करती हुई रचना.

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