सूरज की तपन ...
जल जल कर जल चुका था जल ...,,,
ह्रदय धरा का आकुल ...व्याकुल .....
कट रहे थे पल ....
तब तुम .....बूँद बूँद सुधा सम वसुधा पर ..
टिप-टिप झरीं बरखा ..............!!
अभिनंदन तुम्हारा ...
आज फिर सावन लाई हो ...!!
गरजतीं लरजतीं बरसतीं खनकतीं ....
भर-भर लाई हो ...
यूं सावनी बूंदों में आवाज़ ....................!!
....जैसे बाज रहा हो कोई साज़............................................!!
हिरदय की कुञ्ज गलिन में ......
परम दिव्य सी कान्ति लिए ...... ...
मन की शांति लिए ...
मेरे द्वार ऐसे आई हो .......................!!
पुलकित ललकित ...
ढोल-मृदंग संग ज्यों ..
द्युति दामिनी मैंने पाई हो ............................!!
अहा .....आज फिर सावन लाई हो ...!!
पुरज़ोर बरसती झमा झम ......
नदिया की लहर में लोच बनी ......
इतराईं बलखाईं ....
री बरखा ...
तुम सावन में ऐसी कैसी बरसीं ...??
थी क्या जन्मों की तरसीं.............??
**************************************************************************
पिछले साल ...मुंबई की मनमोहक बरसात .....मेरे घर से वर्षा का वो नयनाभिराम दृश्य ........स्वर्ग सी अनुभूति थी ....!!और अब यहाँ दिल्ली की वो मन परेशान कर देने वाली गर्मी.....!!पिछले कुछ दिनों से रोज़ ही बड़बड़ाना चालू था .....!!मुंबई की याद मन से हटती ही नहीं थी ....!!पर मैं नहीं जानती थी कि मेरे प्रभु मेरी बातें सुन रहे हैं ....!!यकायक दिल्ली का मौसम इतना सुहाना हो जाएगा .....इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी .....!!!
शायद प्रभु से कुछ और मांगती वो भी मिल जाता ......इसलिए कहते हैं हमेशा अच्छा सोचना चाहिए .....पता नहीं कब ईश्वर चुपचाप हमारी बातें सुन रहे हों .....??
आभार ईश्वर का .....दिल्ली का मौसम बहुत अच्छा है इन दिनों .......
जल जल कर जल चुका था जल ...,,,
ह्रदय धरा का आकुल ...व्याकुल .....
कट रहे थे पल ....
तब तुम .....बूँद बूँद सुधा सम वसुधा पर ..
टिप-टिप झरीं बरखा ..............!!
अभिनंदन तुम्हारा ...
आज फिर सावन लाई हो ...!!
गरजतीं लरजतीं बरसतीं खनकतीं ....
भर-भर लाई हो ...
यूं सावनी बूंदों में आवाज़ ....................!!
....जैसे बाज रहा हो कोई साज़............................................!!
हिरदय की कुञ्ज गलिन में ......
परम दिव्य सी कान्ति लिए ...... ...
मन की शांति लिए ...
मेरे द्वार ऐसे आई हो .......................!!
पुलकित ललकित ...
ढोल-मृदंग संग ज्यों ..
द्युति दामिनी मैंने पाई हो ............................!!
अहा .....आज फिर सावन लाई हो ...!!
पुरज़ोर बरसती झमा झम ......
नदिया की लहर में लोच बनी ......
इतराईं बलखाईं ....
री बरखा ...
तुम सावन में ऐसी कैसी बरसीं ...??
थी क्या जन्मों की तरसीं.............??
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पिछले साल ...मुंबई की मनमोहक बरसात .....मेरे घर से वर्षा का वो नयनाभिराम दृश्य ........स्वर्ग सी अनुभूति थी ....!!और अब यहाँ दिल्ली की वो मन परेशान कर देने वाली गर्मी.....!!पिछले कुछ दिनों से रोज़ ही बड़बड़ाना चालू था .....!!मुंबई की याद मन से हटती ही नहीं थी ....!!पर मैं नहीं जानती थी कि मेरे प्रभु मेरी बातें सुन रहे हैं ....!!यकायक दिल्ली का मौसम इतना सुहाना हो जाएगा .....इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी .....!!!
शायद प्रभु से कुछ और मांगती वो भी मिल जाता ......इसलिए कहते हैं हमेशा अच्छा सोचना चाहिए .....पता नहीं कब ईश्वर चुपचाप हमारी बातें सुन रहे हों .....??
आभार ईश्वर का .....दिल्ली का मौसम बहुत अच्छा है इन दिनों .......
रिमझिम मन भर पानी लायी..
ReplyDeleteप्रकृति से हुई आपकी चुपचाप बातचीत का असर है ये खुबसूरत पोस्ट....बारिश कहीं भी हो, आपका काव्य हमें सराबोर कर देता है .....
ReplyDeleteसरस-
ReplyDeleteशिल्प कथ्य मजबूत-
शुभकामनायें-
पुलकित ललकित ...
ReplyDeleteढोल-मृदंग संग ज्यों ..
द्युति दामिनी मैंने पाई हो ............................!!
अहा .....आज फिर सावन लाई हो ...!!
very nice
मन भावन वर्षा..
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
ReplyDeleteशब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)
बहुत सुंदर रचना और अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबरसाती बूंदों सी मनभावन रचना
ReplyDeleteआपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।
ReplyDeleteहृदय से आभार राजेश कुमारी जी ..........!!
Deleteझमाझम बरखा की तरह मन को सुकून पंहुचने वाली आपकी ये प्रस्तुति वाह हृदय से बधाई
ReplyDeleteआपकी इच्छा पूरी हुई इसीलिये कहते हैं कि मन से जो मांगो वो मिल जाता है, वर्षा का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है आपने.
ReplyDeleteरामराम.
कविता तो पुरे शबाब पर है , वर्षा ऋतू की आत्मा सावन का आफताब छिटक रहा है चारो ओर. दिल्ली का सुहावना मौसम विदग्ध ह्रदय पर छींटे मारेग.
ReplyDeleteapratim rachna; didi.
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल मंगलवार (23-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteहृदय से आभार अरुण ....!!
Deleteतब तुम .....बूँद बूँद सुधा सम वसुधा पर ..
ReplyDeleteटिप-टिप झरीं बरखा
बहुत सुंदर,
यहाँ भी पधारे
गुरु को समर्पित
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html
बरखा का बहुत सुंदर चित्रण ..... वाकई मौसम सुहाना हो गया है ...
ReplyDeleteये बारिशें बनी रहे खूबसूरत!!
ReplyDeleteकभी-कभी जब मन चाहे वह हो जाए, तो मगन संगीत भीतर ही बज उठता है -जैसे यह कविता !
ReplyDeleteसावन का स्वागत बहुत सुंदर सृजन से किया है अनुपमा जी ! बहुत प्यारी रचना है ! मन प्राण को उल्लसित कर गयी ! सावन की ढेर सारी शुभकामनायें !
ReplyDeletekya baat hai man khush ho gya padha kar :)
ReplyDeleteबरखा रानी मन की बात सुन लेती है ...
ReplyDeleteह्रदय के तारों को झंकृत करती रचना ...
री बरखा ...
ReplyDeleteतुम सावन में ऐसी कैसी बरसीं ...??
थी क्या जन्मों की तरसीं.............??
सचमुच हर बार जब वर्षा होती है तो लगता है पहली बार क्या उसे मौका मिला है...कितने मन से बरस रही है..प्रकृति में कितनी पूर्णता है..
जल जल कर जल चुका था जल ...,,,..वाह बहुत सुन्दर।
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति है
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletejhamajham barish se bingi rachna..:)
ReplyDeletekhubsurat :)
आभार के बोल भी कितने प्यारे होते हैं न ? आह...
ReplyDeleteगर्मी के बाद बरसात,
ReplyDeleteजैसे,
रात्रि के पश्चात प्रभात !
बहुत बहुत आभार आप सभी का अनमोल वचनों के लिए ......!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. यहाँ भी इस साल हर रोज इतनी बारिश हो रही है जैसे कि मानसून आया हो.
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