मैं विकारी ... तुम निर्विकार ...!!
निराकार मुझमे लेते हो आकार ,
रजनी के ललाट पर उज्ज्वल
यूं मिटाते हो हृदय कलुष ,
मैं आधेय तुम आधार ....!!
मेरे मन के एकाकी क्षणो को
तुम ही तो भर रहे हो,
बताओ तो -
क्यूँ लगता है मुझे
मेरे हृदय के असंख्य अनुनाद,
वो अनहद नाद ,
सुन रहे हो
समझ रहे हो ...!!
तभी तो ..
भीगी हुई चाँदनी सरस बरस रही है
चन्द्र तुम मौन हो,
और ....मेरे निभृत क्षणों को----------
झर झर भर रहा है
अविदित मधुरता सरसाता हुआ,
बरसता हुआ अविरल,
शुभ्र ज्योत्सना सा
तुम्हारा हृदयामृत .....!!
***********************
निभृत -शांत सा ...एकाकी सा ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (10-01-2014) को "चली लांघने सप्त सिन्धु मैं" (चर्चा मंच:अंक 1488) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार शास्त्री जी आपने मेरी कविता को चर्चा मंच पर स्थान दिया ...!!
Deleteमैं विकारी ... तुम निर्विकार ...!!
ReplyDeleteनिराकार मुझमे लेते हो आकार ,
रजनी के ललाट पर उज्ज्वल
यूं मिटाते हो हृदय कलुष ,
मैं आधेय तुम आधार ....!!
बहुत खुबसूरत पंक्तियाँ हैं |
नई पोस्ट आम आदमी !
नई पोस्ट लघु कथा
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीया-
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteमन को कौन पूछे.. हृदयातल तक शीतल करती रचना. अति सुन्दर कृति.
ReplyDeleteअति सुंदर ....
ReplyDeleteबहुत बहुत खुबसूरत प्रस्तुति...
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन .....
ReplyDeleteशुभ्र ज्योत्सना सा
ReplyDeleteतुम्हारा हृदयामृत .....!!
इतने सुंदर शब्द
सुंदर भाव संयोजन !!
वाह अनुपमा जी, चाँद से भी बातें हो गयीं..उसने कुछ कहा तो होगा अगले गीत में लिख डालें
ReplyDeleteतुम्हारा हृदयामृत .....!!
ReplyDeleteइतने सुंदर शब्द
..................सुंदर भाव संयोजन !!
मैं विकारी ... तुम निर्विकार ...!!
ReplyDeleteनिराकार मुझमे लेते हो आकार ,
रजनी के ललाट पर उज्ज्वल
यूं मिटाते हो हृदय कलुष ,
मैं आधेय तुम आधार ....!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है काव्य सौंदर्य देखते ही बनता है।
वाकई शॉंत सा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कृति ...
ReplyDeleteमकर सक्रांति की शुभकामनायें!
आभार आपको भी ....कविता जी ।
Deleteमकर सक्रांति की शुभकामनायें!
ReplyDeleteआभार अमित जी ....आपको भी सपरिवार मकर संक्रांति की शुभकामनायें ।
Deleteचांदनी रात हो
ReplyDeleteचाँद से बात हो
अमृत रस की बरसात हो
वाह वाह क्या बात हो ...।मनोहर प्रस्तुति
चांदनी रात हो
ReplyDeleteचाँद से बात हो
अमृत रस की बरसात हो
वाह वाह क्या बात हो ...।मनोहर प्रस्तुति
चांदनी रात हो
ReplyDeleteचांदसे बात हो
अमृत रस की बरसात हो
वाह वाह क्या बात हो । मनोहारी प्रस्तुति
चन्द्रमा की ज्योत्सना सी स्निग्ध, शीतल, अमृतमयी मधुर रचना ! अति सुंदर !
ReplyDeleteसुन्दर शब्द प्रवाह
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