आज भी .. ...
आज भी सूर्यांश की ऊष्मा ने
अभिनव मन के कपाट खोले ,
देकर ओजस्विता
किरणें चहुँ दिस ,
रस अमृत घोलें ..!!
देकर ओजस्विता
किरणें चहुँ दिस ,
रस अमृत घोलें ..!!
आज भी साँझ की पतियाँ
लाई है संदेसा
पिया आवन का ,
पिया आवन का ,
आज भी
खिलखिलाती है ज़िन्दगी
खिलखिलाती है ज़िन्दगी
गुनकर जो रंग ,
बुनकर सा हृदय आज भी
बुन लेता है
अभिरामिक शब्दों को
आमंजु अभिधा में ऐसे ,
अभिरामिक शब्दों को
आमंजु अभिधा में ऐसे ,
जैसे तुम्हारी कविता
मेरे हृदय में स्थापित होती है ,
अनुश्रुति सी ,अपने
अथक प्रयत्न के उपरान्त !!
हाँ ..... आज भी ..!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
मेरे हृदय में स्थापित होती है ,
अनुश्रुति सी ,अपने
अथक प्रयत्न के उपरान्त !!
हाँ ..... आज भी ..!!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 27 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-09-2020) को "स्वच्छ भारत! समृद्ध भारत!!" (चर्चा अंक-3837) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteलम्बे समयन्तराल के बाद एक सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 28 सितंबर 2020 को "बेटी दिवस" (चर्चा अंक-3838) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सृजन
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत ही सुंदर भावों के साथ एक सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचनाओं से परिपूर्ण ब्लॉग - - नमन सह।
ReplyDeleteआदरणीया अनुपमा त्रिपाठी सुकीर्ति जी, नमस्ते👏! आपकी अतुकांत कविता बहुत अच्छी है। बगुत गहरे अर्थ हैं। "आज भी साँझ की पतियाँ
ReplyDeleteलाई है संदेसा
पिया आवन का!"
बहुत सुंदर पंक्तियाँ!साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
मैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं।
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
आज भी आपकी लेखनी में वही जादू है... आज भी, बहुत दिनों बाद आपको पढ़ना अच्छा लगा, शुभकामनायें !
ReplyDeleteहांँ ! आज भी अनुश्रुति सी ... हृदय में स्थापित होती हुई ।
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर रचना और कमाल के भाव.
ReplyDeleteभी .. ...
ReplyDeleteआज भी सूर्यांश की ऊष्मा ने
अभिनव मन के कपाट खोले ,
देकर ओजस्विता
किरणें चहुँ दिस ,
रस अमृत घोलें ..!!,,,,, बहुत सुंदर रचना ।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआज भी अनुगूँज सुनाई दे रही।
ReplyDeleteअभिरामिक शब्दों को
ReplyDeleteआमंजु अभिधा में ऐसे ,
जैसे तुम्हारी कविता
मेरे हृदय में स्थापित होती है ,
अनुश्रुति सी ,अपने
अथक प्रयत्न के उपरान्त !!
हाँ ..... आज भी ..!!
अहा ! कितनी सुंदर शब्दावली और भाव । बहुत खूबसूरत रचना ।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन
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