ज़िन्दगी की हसीन पनाहों में यूँ ही फिरता हूँ ,
तेरी तस्वीर को आँखों में लिए फिरता हूँ !!
आवारगी की ये कैसी इन्तेहाँ हो गई
तेरे संग धूप में छाया में यूँ ही फिरता हूँ
मेरी मस्ती को मेरी हस्ती की ये कमज़ोरी न समझ
तू ही तू है तेरी यादों में यूँ ही रहता हूँ !!!
तेरे आने की खबर ले के हवा आती है
तेरे रुखसार पे अलकों सी घटा छाती है
तेरे उस नूर का हर पल मैं यूँ दीदार करूँ
इसी हसरत में यूँ ही शाम ओ सहर जीता हूँ
अनुपमा त्रिपाठी
''सुकृति ''
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुंदर व भावपूर्ण सृजन, नीचे कमेंट भाग खुल नहीं रहा है, इसलिए यहीं लिख रही हूँ
Deleteआपका सादर हार्दिक धन्यवाद अनीता जी!!❤️
Deleteउस नूर का इसकदर दीदार कराने के लिए शुक्रिया। उम्दा नज़्म।
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ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०३-१० -२०२२ ) को 'तुम ही मेरी हँसी हो'(चर्चा-अंक-४५७१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत ख़ूब ! प्रेम में समर्पण की पराकाष्ठा !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 04 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका सादर हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी!!❤
Deleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteवाह!खूबसूरत रचना!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन भावाभिव्यक्ति...👏👏👏
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