भर ली मैंने इस
उन्मुक्त गगन में --
एक छोटी सी उड़ान-
पा लिया मैंने जैसे --
एक मुट्ठी आसमान --
सपना सा साकार हुआ --
फिर जीवन से प्यार हुआ-
बीत चली फिर जीवन की विभावरी -
नन्हें पंछीके मन जागी उतावली-
नन्हे नन्हे पंख जो आये-
छू लूं उड़ उड़ आसमान
भोर भई अब फिर उड़ चलूँ -
छूलूं उड़ उड़ आसमान -
मन पुलकित तन पुलकित-
पुलक उठी ज्यों वसुंधरा-
जैसे खेतों की हरियाली -
मन भी मेरा हरा -भरा ---
ओस की एक बूँद से-
जैसे प्यास बुझीमेरी -
नन्हें पंछी की उड़ान से -
तृप्त हुई मैं -----
सपना है या सच है ये ---
हाँ -हाँ सच में ---
भर ली मैंने --
इस उन्मुक्त गगन में --
एक छोटी सी उडान --
हाँ हाँ सच में ----
पा लिया मैंने एक मुट्ठी आसमान !!!!!!!!!!!
पा लिया मैंने एक मुट्ठी आसमान!!!!!!!!!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बस प् लेना एक मुट्ठी आसमां ...तो सारा जग तुम्हारा है
ReplyDeleteसरल शब्दों में - संगीतमय कविता . आसमान में उड़ने का सुख बिरले ही पाते. वह फिर स्वप्न में ही क्यों न हो .
ReplyDeleteमुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता .....
ReplyDeleteइस नन्हे पंछी को अभी खूब ऊँचा उड़ना है ...
आसमान की उचाईयों को छूना है ....
" जिन्दिगी की असली उड़ान अभी बाकी है ,
आपके इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है ,
आभी तो नापा है मुट्ठी भर आसमान ,
अभी सारा आसमान बाकी है !!!!!! "
प्यारा चित्रण किया है आपने.
ReplyDeleteआपकी कवितायेँ गुनगुनाने लायक होती हैं.
सादर
अमृता जी, पहले तो आपका आभार 'कोई है' को पुनः पढवाने के लिये, आपकी यह कविता मैंने पहली बार पढ़ी है बहुत सुंदर चित्रों से सजी यह भी आकाश की बात करती है, मुक्त उड़ान का यह स्वप्न आपको बहुत बहुत मुबारक!
ReplyDeleteHAR KOE CAHATA HAIN EK MUTHI AASMA
ReplyDeleteAASMA TO AANANT AUR AASEEM HAIN
EK MUTHI MIL JAYE KO KAFI HAIN...
AUR AGAR PURA AASMA MIL JAYA TO!!!
BAHUT SUNDER KAVITA
बढ़िया...चित्रमयी अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteनन्हे नन्हे पंख जो आये-
ReplyDeleteछू लूं उड़ उड़ आसमान
भोर भई अब फिर उड़ चलूँ -
छूलूं उड़ उड़ आसमान -
....
मन पुलकित तन पुलकित-
पुलक उठी ज्यों वसुंधरा-
जैसे खेतों की हरियाली -
मन भी मेरा हरा -भरा ---
सारा खेल ही इस मन का है सब कुछ जो आपकी कविता में है वो सर्र का सारा हमारे पास होता है..बस जब मन की भोर हो जाए तभी ऐसी उड़ान हो जाती है.
अनुपमा दी सादर प्रणाम आपको !
वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteपढकर मन हर्षित हो गया है.
पर आपके मेरे ब्लॉग पर अभी तक न आने से उदास हूँ.
आशावादी कविता ! बधाई
ReplyDeleteआपके सब सपने पूरे हों .शुभकामनायें.
ReplyDeleteयह मुट्ठी भर आसमान तीनों लोक से बड़ा है.
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