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13 June, 2010

जीवन -ज्योत बनी पहचान -6

जीवन पथ पर--
कितना रोका जग ने मुझको -
रुक न पाई--
मैं अलबेली झूम -झूम के -
नाची गाई ॥!!

जीवन की ऋतू बदल बदल कर
चलती जाती--- --
कभी हवा फिर कभी धूप-
पर मैं मुस्काती !!!!

गाने की इच्छा ज्यों बढ़ती
जीवन की लौ आंचपकडती -
वही दिया था मन का मेरा --
जलता जाता---
जीवन ज्योत जलाती जाती -

चलती जाती धुन में अपनी
गाती जाती बढ़ती जाती -

मंद मंद था हवा का झोंखा
हलकी सी थी तपिश रवि की
वही दिया था मन का मेरा -
जलता जाता--
जीवन ज्योत जलाती जाती -
चलती जाती धुन में अपनी -
गाती जाती बढ़ती जाती -


फिर ऋतू बदली ....
जीवन बदला .......
कड़ी धूप....! मैं खडी धूप में .....!!.
मन मुरझाया .........
शीतल जल की चाह को
मेरा मन अकुलाया ....
बिसर गए वो गीत थे मेरे ...
फीकी सी पड़ती मुस्कान ............
धीमा सा सुर धीमी सी गति -
जीवन - ज्योत बनी पहचान -

एक घनेरी छाया ढूँढू -
बैठ करूँ मैं कुछ विश्राम --
मंदिर की घंटी सुन जागी -
जीवन -ज्योत बनी पहचान
श्रवण श्रुति सुन नींद यूँ भागी ....
आ गए फिर मन में प्राण ...!!!!
लौट आई फिर वो मुस्कान ......
साध लिया अब मन को मैंने -
जीवन ज्योत बनी पहचान -

जीवन क्या है ------
रैन बसेरा .........
फिर वो बदला ....फिर वो बदला ...
साध लिया अब मन को मैंने
जीवन ज्योत बनी पहचान!!!!!!!!

गाती जाऊं फिर मैं गुनगुन -
लौट आई है वो मुस्कान---
जीवन ज्योत बनी पहचान !!!!!!!!!!!!!!!
जीवन ज्योत बनी पहचान !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

11 comments:

  1. गाती जाऊं फिर मैं गुनगुन -
    लौट आई है वो मुस्कान---
    जीवन ज्योत बनी पहचान..

    Awesome !

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  2. शानदार पोस्ट है...

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  3. बहुत ही संगीतमय कविता . नदी की तरह बहती हुई अभिव्यक्ति . और लिखो . और कभी कभी प्रवाह में आती ले तोड़ने वाली कंदराओं को काट दो .

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  4. बहुत ही संगीतमय कविता

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  5. याद आ गए आज आपके साथ बीते हुए दिन ...
    ऐसा लगा जैसे अपने जीवन पथ को कविता के रूप में पिरो दिया है .....

    साक्षी हें हम इस पथ के....देखा है हमने बदलती ऋतुओँ में आपके मन में संगीत के प्यार को ...जिसे आपने अपने मन ही मन में सजोएँ रखा और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह तन मन से करती रही ...
    साक्षी है हम इस पथ के ....
    बहुत रुकावटें आई , अड़चनें आई ...पर धेर्य के साथ सब कुछ झेलती हुई आप निरंतेर आगे आगे और बस आगे ही बढती रही ....
    साक्षी हें हम इस पथ के ....

    इसे पढकर हरिवंशराय बच्चन जी की कविता "अग्निपथ " याद आ गई ...

    तू ना थकेगा कभी ,
    तू ना थमेगा कभी ,
    तू ना मुड़ेगा कभी ,
    कर शपथ , कर शपथ , कर शपथ ,
    अग्निपथ, अग्निपथ ,अग्निपथ !

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  6. जीवन की ऋतू बदल बदल कर
    चलती जाती--- --
    कभी हवा फिर कभी धूप-
    पर मैं मुस्काती !!!!
    सकारात्मक सोच को शब्दों में बाँध दिया है जैसे..बधाई

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  7. "कभी हवा कभी धूप पर मैं मुस्काई "बहुत सुन्दर अभिव्यकि |बधाई
    आशा

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  8. संगीता जी हलचल पर इस कविता के चयन के लिए हार्दिक आभार ...!!

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  9. जीवन के सच को और ज़िंदगी में आए झंझावातों से लडने की प्रेरणा देती यह रचना मन को सुकूँ देती है ... वक्त बदलता है ..ऋतु बदलती है ..जीवन में भी बदलाव आता है ..पर कड़ी धूप से छाँव का ठौर भी मिलता है ... जो भी जीवन मिले उसे गुनगुना कर जीना ही ज़िंदगी है ... बहुत अच्छी प्रस्तुति

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