तुम को खो दिया तो जाना-
मिट गयी जो -देह थी वो --
छब अभी हैमन में मेरे --
आत्मा है -माँ तुम्हारी --
साथ मेरे
नित नई क्रीडा कराती ---
लिख सकूं जो जी में आये---
गा सकूं जो गीत अब मैं -
छब तुम्हारी साथ मेरे -
नित नयी क्रीडा कराती ..
एक छोटी सी नादान कली थी मैं .
आप ही ने पुष्प भी मुझको बनाया .
पुष्प बनकर भी अगर गंधहीन थी मैं .
आप ही ने सुरभिमय मुझको बनाया .
आप ही ने मेरे पथ के -
अनगिनत कांटे बटोरे .
ज्ञान से आलोकित ह्रदय कर -
अज्ञानता के साए बटोरे.
आपके इस प्रेम को मैं क्या कहूं ?
शब्द नहीं हैं भाव की अभिव्यक्ति के .
आपकी ममता की मैं हूँ चिर ऋणी --
चलती जाऊं बढ़ती जाऊं---
राह में -मैं आपके .
sansaar ki samast mataon ko naman...is sundar rachna ke liye abhaar
ReplyDeletebeautiful written poem and sentiments. thanks for the read.
ReplyDeleteआप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं
ReplyDeleteकहाँ से शुरू करू ...क्या कहूँ....???
ReplyDeleteआँखों में आंसू हैं......छलक छलक के बस यही कह रहे है ...माँ , मेरी माँ !!!
ह्रदय को छू लेने वाली है ये कविता ...
और सच कहा है आपने ....
"माँ के इस प्रेम को में क्या कहूँ ?
शब्द नहीं हैं भाव की अभिव्यक्ति के ...
माँ , तुम्हारी ममता की हूँ में चिर ऋणी ..."
ज़िन्दगी के कुछ खट्टे और कुछ मीठे क्षणोको आपने अपनी कविताओ में बहुत ही सुरमई तरीके से संजोया है .काश !मैभी
ReplyDeleteकुछ ऐसा लिख पाती!!!खैर ,कोई बात नहीं ,शरीर ज़रूर भगवानने अलग दिए है पर मन तो एक ही है .माँ को जो उनके
रहने पर नहीं कह पाए आपने अपनी कविता के ज़रिये मेरे और बबली दीदी की तरफ से भी श्र्र्धांजलि दे दी.thanks a
lot.luv u.सदैव आपकी अर्चु.
manohar bhav..badhai sweekarein
ReplyDeletedil ko chhu lene waali adbudh rachna....
ReplyDeletedil ko chhu lene waali adbudh rachna....
ReplyDeleteआपकी स्वरोज कविता पढने के बाद मन में एक प्रकार की तेज किरण चमकी और में दुनिया की सब माताओं को प्रणाम करता हूँ. माँ तो बच्चे की सोच पर सिसकती ही हे. माँ का महत्त्व दुनिया में कभी भी कम नहीं हो सकता. आपका प्रयास सराहनीय हे. इसे आगे बढ़ाते रहिये. शब्द भण्डार बढ़ाइए ताकि कविताओं में ले और ताल आ सके. प्रसाद गुण लाने का प्रयास कीजिये ताकि आपकी कविताओं का आनंद आम आदमी भी उठा सके.
ReplyDeletebabu