बढ़ता जाता धीमे -धीमे -
जीवन ऐसे ----
अनुभूती --शबरी के खट्टे -मीठे
बेर हों जैसे ॥
सर-सर करती-
सन-नन चलती -
तेज़ हवाएं --
यूँ सम्हल न पायें
मन का घूंघट -
उड़ा ले जाएँ --
चेहरा सबका साफ़ दिखाएँ --
दृष्टि मेरी जीवन पूँजी -
सृष्टि की नवरचना देखूं -
बंद नयन था जीवन सपना -
खुले नयन -जीवन सच देखूं ....
कोई अपना सा बनता पराया -
कोई पराया सा बनता कुछ अपना --
बढ़ता जाता धीमे धीमे जीवन ऐसे -
अनुभूती शबरी के खट्टे मीठे बेर हों जैसे
जीवन ऐसे ----
अनुभूती --शबरी के खट्टे -मीठे
बेर हों जैसे ॥
सर-सर करती-
सन-नन चलती -
तेज़ हवाएं --
यूँ सम्हल न पायें
मन का घूंघट -
उड़ा ले जाएँ --
चेहरा सबका साफ़ दिखाएँ --
दृष्टि मेरी जीवन पूँजी -
सृष्टि की नवरचना देखूं -
बंद नयन था जीवन सपना -
खुले नयन -जीवन सच देखूं ....
कोई अपना सा बनता पराया -
कोई पराया सा बनता कुछ अपना --
बढ़ता जाता धीमे धीमे जीवन ऐसे -
अनुभूती शबरी के खट्टे मीठे बेर हों जैसे
अनुभूती शबरी के खट्टे मीठे बेर हों जैसे. अति सुन्दर . बहुत भाव पूर्ण .
ReplyDeleteSundar komal bhavpurn anubhuti..
ReplyDeletebahut achha laga
बढ़ता जाता धीमे -धीमे -
ReplyDeleteजीवन ऐसे ----
अनुभूती --शबरी के खट्टे -मीठे
बेर हों जैसे ॥
अतीव मधुर..!!!
वाह शबरी के बेरों के स्वाद से जीवन की क्या तुलना की है. प्रशंसनीय.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
बहुत खूबसूरत रचना ...खट्टे मीठे बेर जैसी
ReplyDeleteKhoobsoorat!
ReplyDeletejee haan sabhi ke jeevan ki yehi anubhooti. bahut sundar rachana.
ReplyDeletedhersaara pyaar,
babli
सबरी के बेर तो भक्ति की पराकाष्ठा हैं...
ReplyDeleteउन जैसी अनुभूति!!!
वाह!क्या सुन्दर विम्ब है!!!
अंतिम पैरा बहुत खूबसूरत है.
ReplyDeleteसादर