झड़ -झड़ के पतझड़ --
सूना -सूना सा---
नीरव -नीरस सा -
शांत सा --
कर देता था--
वातावरण...... -
धरा मौन
कर लेती थी धारण --
जीवन अग्रसर ....
साँसे फिर भी निरंतर ...
गूंजता था सन्नाटा --
बेचैनी बढ़ जाती थी ....
निराशा छाजाती थी ...
फिर भी ---
एक आवाज़ आती थी ..
पवन के साथ उड़ने की ....
टूटे -टूटेपत्तों के
गिरने की ...
सूखे -सूखे पत्तों के
खड़खडाने की ....
हस्ती मिट गयी थी जिनकी -
चिर निद्रा में विलीन -
धरा में लीन-
बन गए थे अवशेष...
रह गयी थी एक खोज --
एक भटकन शेष .....
पतझड़ है या..
कोई राग मारवा गा रहा है ...!!!!
पतझड़ सावन या बहार -
हर मौसम के दिन
......चार-चार -
स्थिर सी
बाटजोहती थी पृथ्वी -
सगुन मनावत .......
कब नेह बरसेगा..
मोरे आँगन --
नव पल्लवी का
होगा आगमन ..
फूट पड़ेंगी
नवल कोपलें.....
........कब .....................?
पड़ती जब मेधा की
प्रथम बूँद --
तृषित थी धरा
अब देख रही
पलकें मूँद .....
आहा बीत चुका
पतझड़ का मौसम -
आ गया सावन..
मन भावन -
बरस पड़ी जब
सुमधुर घटा--
बिखरी चहुँ ओर..
मतवारी सी छठा--
रिमझिम रस बहार बरसे ॥
लेकर प्रियतम का प्यार बरसे ॥
भर -भर गीतों की फुहार बरसे ...
गा ले रे मनवा मधुर मधुर गीत ...
ये पल भी जाएँ तोरे न बीत ...
थम जाए बस समय की ये धारा॥
मौसम ने गाया राग मियां - मल्हार प्यारा .....!!!!!!!!!!!!!!!!!
bahut hi khubsurat rachna ke liye badhai......
ReplyDeletepehli baar aapke blog ka rukh kiya...
धन्यवाद शेखर जी
ReplyDeleteरागों की अनुभूती को
कविता में पिरोने की कोशिश की है -
पुनः धन्यवाद .
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी -
ReplyDeleteआप और आपके परिवार को भी -
एक भावभीनी रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
बहुत खूबसूरत बयां हो गया यह तो .
ReplyDeleteराग मारवा और राग मल्हार का ज्ञान कराती, सकारात्मक भाव जगाती, प्यारी कविता।
ReplyDeleteआपकी कविता के ऊपर का हिस्सा मन में उथल पुथल मचा गया...और अंत में बरखा आने पर, तृषित धरती के जल मय हो जाने पर मानो मन की धरती भी हर्षित हो उठी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
आभार.
Ati sunder bhavpoorna rachana, lagta hai jaise koi madhur sangeet sun liya . Shabdon ka chayan aur tana-bana bhi bahoot khoob
ReplyDelete.
Ati sunder , bhavpoorna rachana. shabdon ka chayan jaise sunder raag roopi mala me piroye moti.
ReplyDelete"थम जाए बस समय की ये धारा॥
ReplyDeleteमौसम ने गाया राग मियां - मल्हार प्यारा "
बहुत ही बढ़िया।
सादर
वाह बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteप्रियतम का प्यार बरसता सा ..प्यारा नगमा
ReplyDeleteअदभुत,अनुपम ,बेमिशाल.
ReplyDeleteआपने तो अनुपमा जी कर दिया है धमाल.
नई पुरानी हलचल से यहाँ आकर
मन मग्न हुआ मौसम की सुन मधुर मधुर ताल.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
पतझर के बाद फिर मौसम बदलता है यूँ ही दुःख के बाद सुख भी आता है और सरसता बनी रहती है ..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनिर्झर की झर-खर बहती सुंदर रचना.शीर्षक ने बहुत प्रभावित किया.
ReplyDeleteआनंद ने निःशब्दता की स्थति दे दी है....
ReplyDeleteक्या लिखा है आपने...ओह !!!!
कल 10/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
रितुओंका आवागमन ...उनका बदलना ...कभी इतना सुरीला नहीं लगा .....आपने वह संगीत सुना दिया .....अनुपमाजी!
ReplyDeletewaah....bahut badhiya....
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