नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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22 December, 2010

24-स्मृति .....!!

 कैसे कह दूं मन से अपने -
 बीत गयी सो बात गई -
 पड़ी अटल छब मनः पटल पर -
 मैं न जानू बात नई -

 रह -रह कर बीते दिन की जो -
 यादें मन पर छाई थीं-
 खटकाती थीं दरवाजा  -
 यादों का दीपक लायी थीं -
 आती थीं रह जाती थीं -
 न जाने की जिद लायी थीं -

 घने -घने हो जाते थे -
 छाये जो मेघा यादों के -
 छिटक , ढलक ,फिर बरस पड़े -
 जल -नीर नयन की राह लिए -



शीतल पवन भी मर्म पर मेरे -
ठंडक ही दे जाती थी -
मनः पटल पर स्मृति  की छाया -
और सघन हो जाती थी -

जीवन है तो चलना है -
जग चार दिनों का मेला है -
इक रोज़ यहाँ ,इक रोज़ वहां -
हाँ ----ये ही रैन -बसेरा है .....!!

मिलना और बिछड़ जाना -
ये जीवन की सच्चाई है -
अब कोई मिलता --फिर कोई बिछड़ा --
यादों की परछाईं है ...!!

सुख देकर मन दुःख क्यों पाता -
बात नहीं मैं समझ सकी -
कैसे कह दूं मन से अपने -
बीत गई सो बात गई ..........!!!!!!!!!!!!!!!!!!

25 comments:

  1. बीत गयी सो बात गयी
    मैं न जानूं बात नयी
    इतना सहज नहीं है भुलाना ,
    रैन -बसेरा तो स्मृतियों का ही है |

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  2. स्मृति के उन अन्ध कुओं में नित ही उठते शब्द नये,
    कुछ तो आकर झुलसा जाते, कुछ आ जाते प्रीत पगे।

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  3. A very touchy poem.Another pearl in ur collection.

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  4. सब बातें तो आपने कह ही दी...जीवन चलते रहना है, मिलना बिछड़ना है, यादों में रहना है...बचा क्या? :)

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  5. बहुत भावपूर्ण कविता है...
    स्मृतियों के धागे नहीं तोड़े जाते!!!

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  6. जीवन है तो चलना है -
    जग चार दिनों का मेला है -
    इक रोज़ यहाँ ,इक रोज़ वहां -
    हाँ ----ये ही रैन -बसेरा है .....!!


    smriti ke panne se utare sabd gahre chhap chhod gaye:)

    kabhi hamare blog pe tasreef layen:) pl:)

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  7. मिलाना और बिछड़ जाना -
    ये जीवन की सच्चाई है -
    अब कोई मिलता --फिर कोई बिछड़ा --
    यादों की परछाईं है ...!!
    per yea bahut dukhdai hai
    bahut achaa likhtin hain aap.dilo ko choo jaatin hain.

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  8. घने -घने हो जाते थे -
    छाये जो मेघा यादों के -
    छिटक , ढलक ,फिर बरस पड़े -
    जल -नीर नयन की राह लिए
    baat ekdum sahi hai. beeti baten itni jaldi nahin bhulti. achha likha hai.

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  9. मिलाना और बिछड़ जाना -
    ये जीवन की सच्चाई है -
    अब कोई मिलता --फिर कोई बिछड़ा --
    यादों की परछाईं है ...!

    आपने बहुत प्यारा गीत लिखा है. आपकी उक्त पंक्तियाँ पढ़कर किसी का एक शेर याद आ रहा है :-

    करवटें लीं मेरे हालात ने जैसे जैसे.
    दोस्त भी अपने बदलते गए वैसे वैसे.

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  10. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  11. "स्मृती" की प्रशंसा में मेरे शब्द शायद छोटे पड़ जाएँ फिलहाल एक ही शब्द जहन में आ रहा है - बेमिशाल

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  12. सुख देकर मन दुःख क्यों पाता -
    बात नहीं मैं समझ सकी -
    कैसे कह दूं मन से अपने -
    बीत गई सो बात गई .
    बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति ! बहुत ही सुन्दर !

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  13. नयी पुरानी हलचल के माध्यम से इस पोस्ट पर आज पहुँचा हूँ. "कैसे कह दूं मन से अपने
    बीत गयी सो बात गई-" बहुत भावपूर्ण कविता है.

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  14. रह -रह कर बीते दिन की जो -
    यादें मन पर छाई थीं-
    खटकाती थीं दरवाजा -
    यादों का दीपक लायी थीं -

    बहुत अच्छी प्रस्तुति ... परिकल्पना पर पढ़ी थी ..बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं ...

    शीर्षक ... स्मृति ..कर लें ..

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  15. धन्यवाद संगीता जी ..
    सुधार कर दिया है ...!!

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  16. इतना सहज नहीं है भुलाना ,
    रैन -बसेरा तो स्मृतियों का ही है.. dil ko chu gayi panktiya....

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  17. kaise kah doon maan se apne, beet gayi jo baat gayi...
    sundar..bahut sundar!


    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

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  18. कल 13/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  19. वह...बेहतरीन भाव...बड़ा सही सवाल किया है....
    भूलना आसन नहीं.....खुद की सी कविता लगी....

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  20. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    नववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।

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  21. सुख देकर मन दुःख क्यों पाता -
    बात नहीं मैं समझ सकी -
    कैसे कह दूं मन से अपने -
    बीत गई सो बात गई .......

    बहुत सुन्दर यादें ..नव वर्ष की शुभ कामनाये

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  22. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 24 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  23. रह -रह कर बीते दिन की जो -
    यादें मन पर छाई थीं-
    खटकाती थीं दरवाजा -
    यादों का दीपक लायी थीं -
    आती थीं रह जाती थीं -
    न जाने की जिद लायी थीं -
    वाह!!!
    बहुत ही भावपूर्ण...
    लाजवाब सृजन।

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!