उल्लासित जीवन जीने का -
सतत प्रयास करती रही -
कभी धूप
कभी छाँव के मौसम से -
निरंतर गुज़रती रही -कभी छाँव के मौसम से -
ज़िन्दगी से प्रीत निभाती रही .
छुप जाती थीं जब सूर्य की -
दिव्य उष्म प्रकाश की
अलौकिक रेखाएं -
आच्छादित थीं रवि -आभ पर -
छाँव लाती हुई -
अलक सी घटायें -ठगी सी निर्निमेष निहारती थी -
अपलक मेरी पलक -
वही अलक सी घटायें -
छाई थी मेरे मन पर क्यों -
कारी -कारी अंधियारी लाती हुई -
वही अलक सी घटायें -
उस पर दामिनी -
दमक- दमक कर -
मन डरपा जाती थी -
बीतते न थे-
पल-पल गिनते भी -
दुःख के करील से क्षण .....!!
मनन करता था मन -
करता था पुरजोर अथक प्रयास -
ढूंढता था तनिक आमोद-प्रमोद
आल्हाद और उल्लास ...!!
है यह नियति की परिपाटी -
सुख के बाद -
अब दुःख की घाटी
हर एक मोड़ जीवन का
ले लेता जैसे अग्नि परीक्षा -
पर हो कर्तव्य की पराकाष्ठा -
और अपने ईश पर घनीभूत आस्था -हे ईश -ऐसा दो शीश पर आशीष
जी सकूँ निर्भीक जीवन -
वेग के आवेग से मैं बच सकूँ -
आंधी औ तूफ़ान से जब-जब घिरुं-
दो अभय वरदान अपराजिता बनू -
जब -जब पा जाता था मन प्रसाद -
विस्मृत हो जाते सारे अवसाद -
आ जाता जीवन में पुनः आह्लाद ,
और फिर जी उठता प्रमाद ....!!
फिर वही गीत गुनगुनाती रही .........!!
ज़िन्दगी की रीत निभाती रही ..!
कभी धूप कभी छाँव के मौसम से-
निरंतर गुज़रती रही -
उल्लसित जीवन जीने का-
सतत प्रयास करती रही ........!!!
ज़िन्दगी से प्रीत निभाती रही ............!!!!!!
सुख के बाद -
ReplyDeleteअब दुःख की घाटी
सुन्दर रचना... धूप छांव के खेल से तादात्म्य स्थापित करता अथक प्रयास चलता रहे!
यही प्रीति जीवन के विविध अध्याय लिखती है, वह भी हमारे भविष्य में।
ReplyDelete"...हे ईश -ऐसा दो शीश पर आशीष
ReplyDeleteजी सकूँ निर्भीक जीवन ....."
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति!
अरे वाह!
ReplyDeleteयहाँ तो पहली बार ही आया हूँ!
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यहाँ तो बहुत सुन्दर रचना है!
बढ़िया लेखन के लिए बधाई!
बहुत सुन्दर कविता...
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पे आया हूँ..अच्छा लगा :)
प्रशंसा के लिए ह्रदय से आभार ....!!
ReplyDeleteअनुपमा ही रहो , अपराजिता वैसे ही बन जाओगे . बहुत दिनों बाद ... सुन्दर रचना .
ReplyDeleteकरील से क्षण , शानदार अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteA very true expression of your real in."Very nice composition"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता...
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पे आया हूँ.
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.
अनुपमा जी
ReplyDeleteनमस्कार
बहुत अच्छा लिखती हैं आप ....जीवन के वास्तविक सन्दर्भों को बखूबी उतरा है आपने अपनी लेखनी से ....बहुत - बहुत शुभकामनायें
सबका किस्सा ऐसी ही विसंगतियों का हिस्सा है ।
ReplyDeleteप्रीति निभाती रही .....
प्रशंसनीय रचना ।
एक बेहतरीन रचना ।
ReplyDeleteकाबिले तारीफ़ शव्द संयोजन ।
बेहतरीन अनूठी कल्पना भावाव्यक्ति ।
सुन्दर भावाव्यक्ति
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर बधाई....
बहुत सुदंर
ReplyDeleteशुभकामनाएं
bahut hi behatarin rachana hai...
ReplyDeleteमन के सभी भावों को बेहतरीन शब्द दिए हैं आपने.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.
कभी धूप कभी छाँव के मौसम से-
ReplyDeleteनिरंतर गुज़रती रही -
उल्लसित जीवन जीने का-
सतत प्रयास करती रही ........!!!
ज़िन्दगी से प्रीत निभाती रही ........!!!!!!
sundar...
prernadayak....!!